मिर्गी जड़ से खत्म करने का इलाज | epilepsy Treatment Hindi

मस्तिष्क के किसी हिस्से को अचानक क्षति पहुँचने के कारण स्नायु या तांत्रिक तन्त्र पर मस्तिष्क का नियंत्रण अचानक खत्म हो जाता है। इससे भ्रांति, ऐंठन, मानसिक विश्रृंखलता और मूर्छा आदि प्रकट होती है। शरीर की इस विकारयुक्त अवस्था का नाम है मिर्गी रोग (epilepsy)। इस लेख में में हम जानेंगे मिर्गी जड़ से खत्म करने का इलाज (epilepsy treatment hindi)

मिर्गी के लक्षण

इस रोग में शरीर में खिंचाव उत्पन्न होता है। मिर्गी के दौरे के आक्रमण के पहले रोगी प्रायः समझ जाता है कि रोग आ रहा है। तब जल्दी जल्दी वह लेट जाता है या किसी निरापद स्थान में जाता है। किन्तु बहुत बार रोगी पहले कुछ समझ नहीं पाता और खड़े रहने पर गिर जाता है। रोगी की संज्ञा तब सम्पूर्ण रूप से लुप्त हो जाती है और मांसपेशियां कड़ी हो जाती है। पहले रोगी के मुंह का रंग फीका पड़ जाता है, उसके बाद लाल और भयावना हो उठता है। ऐसी अवस्था प्रायः आधे मिनट तक रहने के बाद रोगी के अंग-प्रत्यंग में प्रबल रूप से ऐंठन प्रकट होती है। रोगी पागलों की भांति आंखें घुमाता है तथा दांत पर दांत रगड़ता रहता है। ऐसी अवस्था में बहुतों की जीभ कट जाती है। रोगी की सांस आने-जाने में आवाज होती है और मुंह से झाग निकलने लगता है। समय-समय पर रोगी के अनजाने ही मल-मूत्र का त्याग हो जाता है। यह अवस्था कई सेकेन्डों से लेकर कई मिनटों तक रहती है। इसके बाद रोगी धीरे-धीरे शांत होता है तथा उसकी संज्ञा लौट आती है तब रोगी सो जाता है।

इस प्रकार का प्रकोप किसी को कई वर्षों के बाद एक बार या किसी को दिन में बहुत बार हो जाता है।

मिर्गी रोग कैसे फैलता है | मिर्गी रोग के कारण

विभिन्न कारणों से यह रोग उत्पन्न होता है। अत्यधिक तम्बाकू का सेवन, शराब का सेवन, अत्यधिक यौन क्रिया, मानसिक तनाव, अत्यधिक मानसिक श्रम और मस्तिष्क पर आघात, मस्तिष्क का ट्यूमर और मस्तिष्क के यांत्रिक रोग (Organic disease) आदि को इसका कारण कहा जाता है। किंतु बहुत अवस्था में साधारण स्वास्थ्यहीनता, सिफलिस, किडनी के रोग तथा विभिन्न विषाक्त औषधि ग्रहण के फलस्वरूप यह रोग होता है।

मिर्गी के दौरे के समय प्राथमिक चिकित्सा

  1. यदि ऐसा लगे कि रोग का आक्रमण हो सकता है तब तनिक भी देर न करके रोगी के सिर पर खूब ठंडे पानी की पट्टी लंबे समय तक रखनी चाहिए। इसके बाद रोगी को बिछावन में परिपूर्ण विश्राम देकर बार-बार प्रचुर पानी पिलाना आवश्यक है।
  2. यदि मिर्गी के दौरे से पहले हाथ या पैर में ऐंठन या दर्द होना शुरू हो, तब हाथ या पैर तुरन्त ठंडे पानी में डुबाने से बहुत बार दौरा रूक जाता है।
  3. दौरे के समय रोगी को अधलेटी अवस्था में रखना चाहिये। इस समय ध्यान रखना पड़ता है कि रोगी के शरीर में किसी प्रकार चोट ना लग पाये। इस अवस्था में उसके दांतों के बीच में रुई का पैड, बड़ा कार्क या एक टुकड़ा या पतला रबर देने से जीभ कटने की संभावना नहीं रहती।
  4. दौरे के समय रोगी के शरीर के कपड़े ढीले कर देने चाहिये। रोगी को यदि उल्टी हो, तब उसे एक करवट करके उल्टी हुई वस्तुएं बाहर निकाल देना आवश्यक है।
  5. यदि दौरे के समय रोगी का सिर ठण्डा हो रहा हो तो उसे उसे तुरंत एक चारपाई पर लिटा कर पैरों की ओर से चारपाई को ऊँचा उठा दें। इस समय रोगी के गले तथा गर्दन की मालिश करना आवश्यक है।
  6. यदि रोगी का सिर यदि गर्म रहे तब मुँह और गर्दन धुलाकर तथा सिर के चारों ओर गीली तौलिया लपेटकर तख्त के सिरहाने को यथासम्भव ऊँचा करके रखना पड़ता है। रोगी के पैर में भी पैक देने से चल सकता है। इस समय रोगी की रीढ़ के दोनों ओर मालिश करनी चाहिए। दौरा खत्म हो जाने के बाद गीले गमछे द्वारा रोगी का सारा शरीर अच्छी तरह से पोंछकर उसे सोने देना चाहिए।

मिर्गी रोग का इलाज | epilepsy Treatment Hindi

मिर्गी रोग के इलाज के लिए ब्रोमाइड और एंटीसेप्टिक आदि विभिन्न थकान उत्पन्न करने वाली दवाइयाँ लगातार प्रयोग की जाती है। इनसे रोगी ठीक तो नहीं होता, बल्कि इन सब औषधियों के व्यवहार के फलस्वरूप मस्तिष्क का स्नायविक केन्द्र क्रमशः चेतनाशून्य हो जाता है। इस रोग की अन्तिम अवस्था में साधारणतः स्मरणशक्ति का लोप, मानसिक अवनति, पक्षाघात तथा जड़ता आदि लक्षण प्रकट होते हैं। ये सब लक्षण दवाइयों के side effects के फलस्वरूप ही उत्पन्न होते हैं। अतः इन सब रोगों में दवाइयों के पीछे दौड़ना एकदम व्यर्थ है। शरीर को अंदर से साफ करना मिर्गी जड़ से खत्म करने का इलाज है।

मिर्गी जड़ से खत्म करने का इलाज | मिर्गी का रामबाण आयुर्वेदिक इलाज

मिर्गी का रोग किसी दवाई से नहीं बल्कि शरीर को साफ रखने से दूर होता है। इसके लिए रोगी का पेट हमेशा साफ रखने की आवश्यकता है। यही मिर्गी जड़ से खत्म करने का इलाज है। मिर्गी के इलाज के लिए यह आवश्यक है कि शरीर में किसी प्रकार के विजातीय तत्व न रहें। इसके लिए शरीर को विषमुक्त करने के लिये सब प्रकार की चेष्टा करनी चाहिये। यदि रोगी के शरीर की आंतरिक सफाई नियमित रूप से होती रहे तो रोगी का खून साफ रहेगा। केवल तभी मिर्गी का रोग दूर हो सकता है। एक डाक्टर (Dr.E. Doumer) ने केवल रोगियों के पेट को साफ रखकर तथा उन्हें केवल दूध और कच्ची सागसब्जी (salad) पर रखकर बहुत से रोगियों का रोग दूर किया है। रोगी के शरीर को अंदर से साफ करने के लिए निम्न उपाय अपना सकते हैं –

  1. रोगी का पेट साफ रखने के लिये उसे नियमित रूप से हिप बाथ, पेट की लपेट तथा पेडू में मिट्टी की लपेट आदि प्रयोग करनी चाहिये।
  2. गीली चादर का लपेट रोगी के लिये अत्यंत फलप्रद है। प्रति सप्ताह यह रोगी को गीली चादर का लपेट कम से कम दो बार करना उचित है। पहले पहल यह मात्र 20 मिनटों के लिये प्रयोग करना चाहिए और उसके बाद धीरे-धीरे गीली चादर के लपेट का समय बढ़ाना चाहिए है। इसके सहन होने के साथ-साथ लपेट की संख्या बढ़ाकर अन्त में एक दिन बीच देकर एक दिन प्रयोग किया जा सकता है तथा एक घंटे के लिये गीली चादर के लपेट के भीतर रखा जाता है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि रोगी का सिर सदा ही ठण्डा रहे । इसके लिए सर पर ताजे पानी की पट्टी रखते रहें।
  3. रोगी की पूरी रीढ़ के ऊपर प्रतिदिन दो से बारह मिनटों के लिये गर्म-ठण्डा सेंक देना उचित है। पहले ठंडा सेंक और उसके बाद गर्म सेंक देना आवश्यक है। ये सेंक एक साथ तीन-चार बार दे सकते है। पहले पहल गर्म सेंक केवल दस सेकेण्ड के लिये देना चाहिये। इसके बाद सहन होने के साथ-साथ क्रमशः समय बढ़ाकर प्रतिबार दो मिनट तक गर्म दिया जा सकता है। रोगी की रीढ़ में गर्म-ठण्डा सेंक देने के पहले उसका सिर सदा ही धो लेना उचित है तथा ठण्डा-गर्म सेंक देने के बाद स्नान करा देना कर्तव्य है। इस प्रक्रिया के लिए किसी योग्य प्राकृतिक चिकित्सक की सहायता लेना चाहिए।
  4. रोगी को प्रतिदिन नियमित रूप से स्नान कराना आवश्यक है। दिन में एक बार उसे अवश्य ही हिप बाथ कराना चाहिए। सोने के पहले उसका सिर खूब अच्छी तरह धोकर सारा शरीर गीले गमछे द्वारा पोंछ देना चाहिये।
  5. रोगी को प्रतिदिन एक बार आधे घंटे के लिये तौलिए से रगड़ना चाहिए। इससे उसके शरीर में खून का दौरा बढ़ जाता है और नया खून जल्दी बनता है।
  6. यदि रोगी का शरीर ठंड रहता हो तो उसे कुछ समय के लिये धूप में बैठाकर उसके बाद शरीर गर्म रहते रहते सूखे तौलिए से रगड़ना चाहिए। धूप में बैठाने से पहले सिर धो लेना चाहिए और सिर को छाया में रखना चाहिए।
  7. रोगी को यथासम्भव खुले और ठण्डे स्थान में निवास करना चाहिए है तथा रात्रि को बरामदे में सोना चाहिए है।
  8. यदि रोगी के शरीर में कहीं भी कोई बीमारी जैसे सूजी हुई टॉन्सिल, पायरिया और कब्ज आदि को जल्दी से जल्दी ठीक कर लेना चाहिए। इन बीमारियों के चलते मिर्गी का जल्दी ठीक होना संभव नहीं।

मिर्गी में योगासन और व्यायाम

  1. मिर्गी के रोगी के लिये धीरे धीरे बढ़ाने वाला व्यायाम विशेष रूप से आवश्यक है। रोगी पहले हल्के व्यायाम से शुरू कर अंत में थकाने वाले व्यायाम करने चाहियें।
  2. रोगी को प्रतिदिन खुले स्थान में व्यायाम करना चाहिये।
  3. यदि रोगी सक्षम हो तो कम से कम प्रतिदिन चार से छः मील टहलना आवश्यक है। खुली हवा में सब प्रकार के खेल भी उसके लिए हितकर है।
  4. जिन सब आसनों से उसे रीढ़, पेट और मस्तिष्क के भी रक्त संचालन बढ़े तथा जिनसे पेट और रीढ़ का व्यायाम हो उन पर सदा जोर देना चाहये। इसके लिये उत्थान – पादासन, शलभासन, भुजंगासन, धनुरासन, हलासन पश्चिमोत्तानासन, योगमुद्रा, उड्डीयान, सर्वांगासन और शीर्षासन आदि का धीरे-धीरे अभ्यास करना चाहिये।

मिर्गी के रोगी के लिए विशेष सावधानियां

  1. मिर्गी के रोगी को कभी अकेले नहीं रहना चाहिए।
  2. यदि रोगी जीविका के लिए कोई कोई काम करता है, तब उसे कभी पानी के पास या किसी कारखाने में मशीन के पास या किसी अन्य उपकरणों के पास काम नहीं करना चाहिए। रोगी कोई कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिसमें उसके मस्तिष्क पर मानसिक दबाव अधिक पड़े।
  3. रोगी को अकेले कभी भी साइकिल या मोटर चलाने अथवा घोड़े पर नहीं चढ़ने देना चाहिए।
  4. रोगी को हमेशा ऐसे वातावरण में रहने का प्रयास करना चाहिए, जहां उसके मस्तिष्क पर कोई दबाव न पड़े और उसको उत्तेजित न होना पड़े।

मिर्गी के रोगी को क्या खाना चाहिए

  1. मिर्गी की चिकित्सा आरम्भ करने के बाद रोगी को प्रथम दो सप्ताह केवल फल और फलों का रस खाकर रहना चाहिए है। इसके बाद कई महीने केवल फलों का रस, फल, दूध, सलाद और हरी शाक-सब्जियाँ तथा उबाली हुई तरकारियाँ खानी चाहिये।
  2. रोगी के खाद्य में जिसमें यथेष्ट रूप में विटामिन बी (Vitamin B Complex) रहे इसकी व्यवस्था करना कर्तव्य है।
  3. रोगी को प्रतिदिन नियमित समय पर हल्का पथ्य ग्रहण करना आवश्यक है। कभी भी उसे पेट भरकर खाना उचित नहीं और नियत समय के अतिरिक्त कभी भी दो बार भोजन के बीच में कुछ नहीं खाना चाहिये।
  4. खाना सम्पूर्ण रूप से हजम होने पर ही सोने जाना चाहिए।

मिर्गी के रोगी को क्या नहीं खाना चाहिए | मिर्गी के रोगी के लिए परहेज

  • ऐसी बहुत सी वस्तुएं हैं, जिनको खाने पर मिर्गी का दौरा आ सकता है। किसी को अंडा खाने से, किसी को दूध पीने से और किसी को दाल खाने से दौरा या सकता है। इस प्रकार की खाने की वस्तुएं रोगी को नहीं देनी चाहिए।
  • मांस और मांस का सूप भी कभी रोगी को नहीं देना चाहिए।
  • मिर्गी के रोगी को चाय और कॉफी भी नहीं देनी चाहिए।
  • सफेद नामक का सम्पूर्ण रूप से त्याग करना चाहिए। इसके स्थान पर बहुत कम मात्रा में सेंधा नमक लेना चाहिए।
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