गाय के पंचगव्य से कैंसर के मुफ्त इलाज के लिए एक अनोखा हॉस्पिटल

यह माना जाता है कि गाय में सभी देवताओं का वास है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि गाय के दूध से लेकर मूत्र तक में पोषण और गंभीर बीमारियों से लड़ने की क्षमता होती है. गाय के दूध, घी, दही, गोबर और गौमूत्र से कैंसर की बीमारी तक ठीक की जा सकती है. आज हम आपको ऐसे ही हॉस्पिटल के बारे में बताने जा रहे हैं, जहाँ पर गाय के पंचगव्य से कैंसर जैसी घातक बीमारी का इलाज फ्री किया जाता है.

कैंसर बीमारी के बारे में जानकारी

जैसा कि सर्वविदित है कि कैंसर एक अत्यंत ही घातक बीमारी है, जिससे विकासशील देशों में हजारों जिंदगियां मौत के मुंह मे समा जाती हैं। पिछले लगभग 25 वर्षों में कैंसर के कारणों व उसके उपचार तथा रोकथाम आदि सभी विषयों पर बहुत अधिक संख्या में अनुसंधान हो रहे हैं जिनके आधार पर शरीर में कोशिकीय स्तर पर होने वाले परिवर्तनों तथा जैविक व रासायनिक क्रियाओं की अनेकों नई नई जानकारियां मिली हैं। साथ ही कैंसर के उपचार के लिए शल्य चिकित्सा, कीमोथेरेपी तथा विकिरण जैसी तकनीकों पर अनेकों शोध हुए हैं तथा उनमें अभूतपूर्व सुधार भी हुए हैं। इन आधुनिक खोजों, जानकारियों तथा उपचार की तकनीकियों के कारण कैंसर से होने वाली मृत्यु दर में कमी आई है। इसके बावजूद फेफड़ों, छाती, अमाशय, आंत, प्रोस्टेट तथा मूत्राशय कैंसर से पीड़ित मरीजों की स्थिति में विशेष अंतर नहीं आया है नवीन शोधों के आधार पर वैज्ञानिकों द्वारा यह माना जाने लगा है कि इन कैंसर रोगों के उपचार की अपेक्षा रोकथाम का उपाय करना अधिक कारगर सिद्ध हो सकता है।

कैंसर का कारण

इस विषय में वैज्ञानिकों द्वारा खोजे गए अनुसंधानों से यह निष्कर्ष निकलता है कि रोगों की उत्पत्ति के कारणों में मनुष्य की आहार व्यवस्था प्रमुख है। हरे भरे जंगलों चरागाहों में चरने वाली भारतीय नस्ल की गायों का दूध, दही, छाछ, घी, मक्खन तथा गोबर-गोमूत्र से निर्मित और जैविक खाद द्वारा उत्पन्न अन्य अन्न, फल, साग सब्जियां आदि खाद्य पदार्थ शुद्ध व पौष्टिक आहार होते हैं. शुद्ध व पौष्टिक आहार में रोग निरोधक शक्ति होने से कैंसर या असाध्य रोग उत्पन्न नहीं होते। आज के आधुनिक युग में रासायनिक खादों व जहरीले कीटनाशकों के अत्यधिक मात्रा में उपयोग से सभी खाद्य पदार्थ, जल एवं वायु प्रदूषित व रोग कारक होते जा रहे हैं।

आयुर्वेद में गाय का महत्त्व

गाय में सभी देवताओं का वास है। जहां-जहां गाय रहती है, उसी स्थान पर नक्षत्रों का भी प्रभाव पड़ता है। धर्मशास्त्रों, अथर्ववेद एवं ऋग्वेद आदि आयुर्वेद ग्रंथों में गाय के दूध में महत्व पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। गौ दुग्ध को साक्षात अमृतमय पेय बताया गया है। विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किए गए अनुसंधानों के उपरांत यह निष्कर्ष निकलता है कि गाय के दूध में उपस्थित वसा में अनेको कैंसर रोधी तत्वों में कन्ज्यूगेटिड लिनोलिक अम्लीय यौगिक पदार्थ (सी.एल.ए.) प्रमुख है। यद्यपि यह प्रकृति प्रदत्त अनेकों खाद्य पदार्थों में भी पाए जाते हैं, लेकिन इनकी मात्रा गाय के दूध में सबसे अधिक होती है। गाय के दूध-दही व मक्खन का अधिकाधिक प्रयोग करने वाली माताओं के दूध में सी.एल.ए. तत्वों की मात्रा अधिक पाई गई है।

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पंचगव्य के फायदे और चिकित्सा में उपयोग

ब्रह्मांड में विद्यमान अनेकों नक्षत्रों की किरणों का यह प्राप्तकर्ता (रिसीवर) है। गाय की रीढ़ की हड्डी के अंदर सूर्यकेतु नामक नााड़ी होती है, जिसके द्वारा सूर्य की किरणों से अपने रक्त में स्वर्णक्षार बनाती है। वह स्वर्णाक्षर गोरस में विद्यमान है जिससे गाय का दूध घी का रंग स्वर्ण आभा वाला होता है। उन्हीं किरणों के प्रभाव से गाय के रक्त में प्राण शक्ति बढ़ती है। इसी रक्त का छना हुआ अवशिष्ट भाग गोमूत्र है।

गाय के पंचगव्य से कैंसर के मुफ्त इलाज के लिए एक अनोखा हॉस्पिटल

आयुर्वेद में भारतीय नस्ल की गायों के गोबर दूध दही व घी से निर्मित पंचगव्य में कैंसर जैसे असाध्य रोगों के महाविषों को विषहीन करने की क्षमता का उल्लेख है। इसी के आधार पर अखिल भारतीय कृषि गौ सेवा संघ के अध्यक्ष माननीय श्री केसरी चंद मेहता ने अपने निवास स्थान मालेगांव, नासिक में अपनी माता जी की स्मृति में कैंसर के उपचार हेतु 140 दिवसीय शिविर लगाया, जिसमें आवास, भोजन, दवाइयां व अन्य सभी सुविधाएं निशुल्क उपलब्ध कराई गई। संस्था की गौशाला की स्वदेशी नस्ल की गायों का शुद्ध ताजा गोबर, गोमूत्र, दूध, दही व बिलोवण द्वारा तैयार घी से निर्मित पंचगव्य तथा कस्तूरी, अंबर जैसे अन्य धातु व अश्वगंधा, शतावरी व तुलसी जैसी जड़ी बूटियों के मिश्रण से निर्मित औषधियों से आयुर्वेदिक व एलोपैथिक योगी चिकित्सकों द्वारा निदान उपचार किया गया जिससे अधिकांश रोगियों को बहुत लाभ मिला।

तत्पश्चात देश के अन्य स्थानों पर भी ऐसे ही शिविर लगाने के आमंत्रण आने लगे और कई स्थानों पर शिविर लगाए गए, जिनमें उपरोक्त सुविधाएं उपलब्ध कराई गई। उन शिविरों का खर्चा दानदाताओं द्वारा वहन किया गया। इसी क्रम में पालीताणा शहर में श्री प्रभव हेम कामधेनु गिरिविहार ट्रस्ट नाम की एक विशाल गौशाला, जिसमें करीब 7000 शुद्ध स्वदेशी नस्ल की गौ वंश है में ऐसे ही दो शिविर लगाए गए। श्री प्रभाव हेम कामधेनु गिरिविहार ट्रस्ट के मुख्य संचालक श्री जग्गू भाई लीला चंद शाह हैं।

पालीताणा जैन समाज का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। तीर्थ स्थल में पूज्य आचार्य श्री हेम प्रभु सागर सुरेश्वर जी महाराज की प्रेरणा से गौशाला में करोड़ों रुपया दान स्वरूप आता है। यहां आने वाले रोगियों से मात्र रु.1 प्रतिदिन भोजन शुल्क लिया जाता है तथा अन्य सभी सुविधाएं भी निशुल्क उपलब्ध हैं। यहां पर 1000 से 1200 तक यात्री तथा रोगी प्रतिदिन आते हैं।

उनमें से कुछ यात्री कैंसर शिविर देखने आए थे। शिविर में रोगियों के कैंसर उपचार से लाभ व अन्य निशुल्क सुविधाओं से प्रभावित होकर अनेक यात्री अपने कैंसर पीड़ित संबंधियों एवं मित्रों को शिविर में भर्ती कराना चाहते थे। लेकिन स्थानाभाव के कारण वहां पर सभी नए रोगियों को भर्ती करना असंभव था। इसीलिए आचार्य श्री हेम प्रभु सागर सुरेश्वर जी महाराज ने उसी वक्त यहां पर कैंसर उपचार का एक स्थाई हॉस्पिटल खोलने की प्रेरणा दी। महाराज श्री के कहते ही सेठ रसिकभाई माणक चंद जी धारीवाल ने हॉस्पिटल, भोजनशाला आदि बनाने की स्वीकृति दे दी। कई दानदाताओं ने अस्पताल के लिए मुक्त हस्त से दान देने की। फलस्वरूप करोड़ों रुपए इकट्ठा हो गया। उसी समय हॉस्पिटल का निर्माण कार्य प्रारंभ हो गया। सेठ रसिकभाई माणक चंद जी धारीवाल ने 1 साल के अथक परिश्रम के बाद हॉस्पिटल का निर्माण पूरा किया। हॉस्पिटल का नाम रखा गया सेठ रसिक भाई मानिकचंद धारीवाल कैंसर हॉस्पिटल। अस्पताल का पूरा पता है-

फोन नंबर 02629-268 080 मोबाइल नंबर 098 230 16 860

पलीताणा का यह अस्पताल वलसाड से 16 किलोमीटर नवसारी नेशनल हाईवे नंबर 8 पर स्थित है। इस हॉस्पिटल के लिए सभी सुविधाओं से संपन्न एक गौशाला का भी निर्माण किया गया, जिसके लिए गिर नस्ल की 52 गाय खरीद कर लाई गई। उनको अश्वगंधा, शतावर आदि अनेक जड़ी बूटियां खाने में दी जाती हैं। इन गायों के गोबर ,गोमूत्र, दुग्ध, दही एवं घी का उपयोग पंचगव्य में किया जाता है

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