शिवाम्बु के लाभ बहुत सारे हैं. लेकिन आम जन समुदाय में इसके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है. हमारे देश में स्वमूत्र ‘शिवाम्बु कल्प‘ के नाम से तान्त्रिकों आदि के कई विशेष सम्प्रदायों में, खासकर हठयोगियों में, सैकड़ों वर्षों से प्रचलित है, परन्तु उसका प्रयोग गोपनीय ढंग से होता रहा है। आईये जानते हैं शिवाम्बु के लाभ के बारे में.
शिवाम्बु क्या है | What is Shivambu in Hindi
शिवाम्बु चिकित्सा shivambu chikitsa में काम आने वाले स्वमूत्र को शिवाम्बु कल्प shivambu kalpa भी कहा जाता है. हरएक हठयोगी साधक योग की साधना शुरू करने से पूर्व अपने शरीर को पूर्ण स्वस्थ करने के लिए शिवाम्बु कल्प विधि shivambu kalpa vidhi का प्रयोग करता है। इससे उसके स्वास्थ्य में काफी सुधार होता है। इतना ही नहीं, मन व इन्द्रियों आदि के विकार दूर करने में भी उसे काफी मदद मिलती है। भारतीय आयुर्वेद के ग्रंथों में ‘मानव मूत्र’ और तान्त्रिक ग्रन्थों में शिवाम्बु कल्प shivambu kalpa के स्पष्ट उल्लेख अनेक स्थान पर मिलते हैं। आयुर्वेद में ‘मानव मूत्र’ का विषघ्न (विष को हरने वाला) और रसायन (रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाला) के रूप में वर्णन किया गया है।
पिछले सात दशकों में हजारों मरीजों ने अपनी विविध प्रकार की बीमारियों को शिवाम्बु चिकित्सा Shivambu Chikitsa से दूर किया है, जिनमें मलेरिया, इन्फ्लुएन्जा, टाइफाइड आदि बुखार, कॉलरा, दस्त, उल्टी आदि पेट की बीमारियाँ, क्षयरोग, चेचक जैसी छूत की बीमारियाँ, कैन्सर, ल्यूकेमिया, कोरोनरी थ्रोम्बोसिस, गैंग्रीन, ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, नेफाइटीस, प्रोस्टेट ग्लैण्ड, हृदय – रोग, दमा, मोतियाबिन्द, पीलिया आदि जैसी अनेक बीमारियाँ शामिल हैं।
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शिवाम्बु चिकित्सा के शास्त्रीय एवं परंपरागत आधार
भाव प्रकाश में शिवाम्बु (स्वमूत्र) की चर्चा करते हुए इसे रसायन, निर्दोष और विषघ्न (विष को हरने वाला) बताया गया है. डामर तंत्र में प्राप्त उद्धरणों के अनुसार भगवान् शंकर ने माता पार्वती को इसकी महिमा समझाई और कहा कि शरीर के लिए स्वमूत्र अमृत है. इसके सेवन से मनुष्य निरोग, तेजस्वी, बलिष्ठ, कांतिवान तथा दीर्घायु को प्राप्त होता है. अथर्ववेद हठयोगप्रदीपिका, हारीत, वृद्धवाग्भट्ट, योग रत्नाकर, जैन, बौद्ध, ईसाई आदि धर्मों के अनेक ग्रंथों में शिवाम्बु चिकित्सा की चर्चा है. अघोरपंथी अवधूतों तथा तांत्रिकों की परंपरागत स्वमूत्र सेवन विधि तथा स्वमूत्र मालिश क्रिया ने शिवाम्बु चिकित्सा को अब तक जीवित रखा है. वर्तमान में शिवाम्बु चिकित्सा पद्धति को पुनर्जीवित करने का श्रेय डब्ल्यू. जे. आर्मस्ट्रांग को जाता है.
शिवाम्बु चिकित्सा के लाभ तथा विशेषताएँ | शिवाम्बु के लाभ | shivambu benefits in hindi
- हर प्रकार की बीमारी को स्वमूत्र – इलाज से ही कम समय में, आसानी से, ठीक किया जा सकता है। यह अनुभवसिद्ध तथ्य है।
- शिवाम्बु कल्प विधि shivambu kalpa vidhi से उपचार घरेलू इलाज की तरह सरल, बिना किसी खर्च और खतरे के किया जा सकता है।
- बीमारी में इलाज के लिए किसी डॉक्टर की मदद या अन्य किसी दवा, इंजेक्शन आदि की आवश्यकता नहीं। कौन – सी बीमारी है। इसकी जानकारी के लिए खून, थूक, शिवाम्बु आदि की लेबोरेटरी में जाँच और एक्सरे, कार्डियोग्राम आदि की भी आवश्यकता नहीं पड़ती।
- शिवाम्बु कल्प विधि द्वारा इलाज से चोट लगने, जल जाने से हुए घाव में शीघ्र आराम होता है, घाव जल्दी सूख और भर जाते हैं। भीतरी चोट के कारण मोच आ जाने या सूजन हो जाने पर होनेवाले दर्द में भी इस उपचार विधि से जल्द आराम होता है।
- साँप, बिच्छू, पागल कुत्ते आदि के काटने पर विष चढ़ने या अफीम आदि नशीले पदार्थ खाने से चढ़े जहर के प्रभाव को दूर करने में, विष उतारने में, इस उपचार से बहुत लाभ होता है।
- वृद्धावस्था के कारण कमजोरी, अतिशय गरमी या ठण्डी में होनेवाली बेचैनी, शारीरिक, मानसिक श्रम के कारण थकान आदि इस उपचार से जल्दी दूर हो जाते हैं।
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शिवाम्बु चिकित्सा में आने वाली कठिनाइयां और उनका समाधान
शिवाम्बु चिकित्सा में कुछ कठिनाईयां सामने आती हैं. पहली कठिनाई यह है कि हमारे समाज की यह रूढ़िगत मान्यता है कि ” शिवाम्बु हमारे शरीर से बाहर फेंका जानेवाला गन्दा, जहरीला मल या कचरा है। ” परन्तु यह मान्यता सत्य से कोसों दूर है, ऐसा’ मानव – मूत्र’ पर अमेरिका, जापान आदि देशों में होनेवाले वैज्ञानिक अनुसंधानों से सिद्ध हो चुका है। इन अनुसंधानों से यह मालूम हुआ है कि हमारे शिवाम्बु में कैन्सर, हृदय – रोग, क्षयरोग आदि जानलेवा हठीली बीमारियों को खत्म कर सकनेवाले अनेक कीमती द्रव्य – क्षार, विटामिन्स, हारमोन्स, एन्जाइम्स आदि मौजूद हैं।
दूसरी कठिनाई शिवाम्बु Shivambu के बुरे स्वाद और बुरी गन्ध के कारण होती है। यह कंठिनाई भी बिना मिर्च – मसाले का सादा भोजन दूध, फल आदि लेने पर आसानी से दूर कर सकते हैं। क्योंकि ऐसा सादा भोजन लेने पर शिवाम्बु Shivambu का रंग, गंध और स्वाद भी करीब – करीब शुद्ध पानी के समान ही हो जाता है। इसलिए शुरू करने के लिए सर्वप्रथम आवश्यकता है अपने मन को तैयार करने की। ऐसा करने के लिए एक – दो दिन, रोज दो – तीन बार शिवाम्बु के तीन – चार कुल्ले करना शुरू करें। फिर आखिरी कुल्ले के शिवाम्बु को पी जायँ। शिवाम्बु से दाँत साफ करें यानी दाँत और मसूढ़े को धोयें। ऐसा करते रहने से शिवाम्बु की घिन दूर हो जायेगी। तब विधिवत् उपचार शुरू करें। नोट : जिस मरीज को ज्यादा घिन लगती हो, उसे शुरू में सिर्फ एक एक चम्मच शिवाम्बु एक – दो दिन तक रोज तीन – चार बार पीना चाहिए और पुराने शिवाम्बु की मालिश हाथ – पाँव में कहीं – कहीं करनी चाहिए।
शिवाम्बु चिकित्सा से साधारण बीमारियों का उपचार | Shivambu Chiktsa
सर्दी, खाँसी, पेट में गैस, अपच, कब्ज आदि के उपचार प्रात: उठकर तुरन्त ही किये शिवाम्बु Shivambu को स्वच्छ काँच के गिलास में लेकर पी जायें। बच्चों को उम्र के हिसाब से 2 से 8 चम्मच तक देना चाहिए। रोग ज्यादा गंभीर हो तो दिन में तीन बार – सुबह, दोपहर, शाम भोजन के दो – तीन घण्टे बाद और शाम को सोने के समय शिवाम्बु पान करना चाहिए।
स्वस्थ व्यक्ति यदि रोज सुबह एक बार शिवाम्बु Shivambu पिए, तो उसे अपने स्वास्थ्य और शक्ति को बनाये रखने में मदद मिलेगी। साथ – साथ चेचक, कॉलरा, क्षय आदि छूतवाली बीमारियों से बचाव की शक्ति प्राप्त होगी।
आँख की रौशनी बढ़ाने में शिवाम्बु का प्रयोग | Shivambu for Eyes
उम्र बढ़ने के साथ आँखों की रौशनी भी कम होने लगती है. इसकी शुरुआत आँखों के आगे धुंधलापन आने से होती है. इसके लिए सुबह उठकर पहला शिवाम्बु किसी चौड़े मुंह वाले बर्तन में ले लें. मूत्र के ठंडा होने पर इसे अक्षि तर्पण (eye wash) वाले गिलास में लेकर एक आँख उसमें डुबो लें और आँख की पुतली को चारों तरफ घुमाएँ. दोनों आँखों को 2-5 मिनट तक साफ करें. इसके बाद मूत्र को फेंक दें और अक्षि तर्पण वाले गिलास में साफ़ जल भरकर उससे दोनों ऑंखें साफ़ करें. 2 महीने के अन्दर आँखों का धुंधलापन ठीक हो जाता है.
आँख की बीमारी में शिवाम्बु का प्रयोग
रोज सुबह – शाम दो बार शिवाम्बु गिलास में लेकर 8 – 10 मिनट तक स्थिर रहने दें, जिससे उसमें का क्षार, रेतीले कण जैसे पदार्थ नीचे बैठ जायें। फिर ऊपर का स्वच्छ एक औंस के लगभग शिवाम्बु दूसरे गिलास में आँख के उपयोग हेतु निकाल लें। शीशेवाली ‘आई वाश कप’ लेकर उसमें एक – दो चम्मच शिवाम्बु डालें और आँख को उसमें डुबायें, फिर उसीमें खोलें- बन्द करें। आँख की पुतली को ऊपर – नीचे, दायें – बायें चारों ओर घुमायें। यह दोनों क्रियाएँ करीब 25 बार करें। इसके बाद वह शिवाम्बु फेंक दें और इस विधि के अनुसार दूसरी आँख भी धोयें। कान, नाक में ताजे शिवाम्बु की दो बूंद रोज डालें।
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शिवाम्बु से उग्र बीमारियों का उपचार
मलेरिया, टाइफाइड, फ्लू आदि बुखार, उल्टी, दस्त, छाती, पेट या शरीर के अन्य भागों में होनेवाले असाध्य दर्द, घबराहट, बेचैनी आदि कोई भी बीमारी मालूम होते ही पहले तो मरीज को भोजन देना बन्द कर दें, और दिन – रात में जितना और जितनी बार उसे शिवाम्बु हो, सब पिला दें। इस तरह हर प्रकार की उग्र बीमारी दो से चार दिन में दूर की जा सकती है।
ऐसी उग्र बीमारी में मरीज को इलाज शुरू करते समय पहले हलके गुनगुने डेढ़ से दो सेर पानी का एनिमा दे दिया जाय, तो थोड़े समय में ही राहत मिल जायगी। किसी मरीज का शिवाम्बु यदि बन्द हो गया हो, या बहुत ही कम हो रहा हो तो ऐसी बीमारी में भी छोटे बच्चे का या अन्य किसी स्वस्थ व्यक्ति का शिवाम्बु (आधा – पौन ग्लास ) तक पिला देने से एक – दो घण्टे में ही उसे शिवाम्बु होने लगेगा। फिर वह अपना शिवाम्बु पीना शुरू कर सकेगा। ऐसे रोगों में पुरुष को अन्य पुरुष का और स्त्री को अन्य स्त्री का ही शिवाम्बु देना चाहिए।
कैंसर, हृदय – रोग, कुष्ठ, दमा, क्षय आदि का निदान होते ही तुरन्त शिवाम्बु चिकित्सा पद्धति से उपचार करने और खान-पान में आवश्यक परहेज रखने से बीमारी को ३ से ६ सप्ताह के अन्दर आसानी से दूर किया जा सकता है। ऐसी जिद्दी बीमारियों में मरीज को शिवाम्बु व पानी पीकर उपवास करने, पुराने शिवाम्बु से मालिश करने की भी जरूरत पड़ती है।
पुराने शिवाम्बु से मालिश करने की विधि
कैन्सर, दमा, कुष्ठ आदि पुराने हठीले रोगों को दूर करने के लिए पुराने शिवाम्बु की विधिपूर्वक की गयी मालिश इस इलाज में बहुत महत्त्वपूर्ण है। मालिश में पूरे शरीर की चमड़ी पर होनेवाले घर्षण से शिवाम्बु शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करता है और उसमें जमे मल या आँव का नाश करता है, उसे पिघलाकर सरदी, कफ, कै – दस्त या चमड़ी के रोम – छिद्रों द्वारा शरीर से बाहर निकाल देता है। इस प्रकार शरीर के शुद्धिकरण से बीमारी दूर करने में मदद मिलती है।
इसके लिए पौन से एक लीटर पानी आने लायक चार बड़ी बोतलें लेकर उसे अच्छी तरह साफ कर लें। उन पर 1,2,3,4 नम्बर के लेबल चिपका दें। प्रथम दिन का शिवाम्बु बोतल नम्बर 1 में एकत्रित करें। इसी तरह चार दिनों में चारों बोतलें भर जायेंगी।
मालिश की शुरूआत बोतल नं 1 के चार दिन पुराने शिवाम्बु से करें। उस बोतल को गरम पानी से भरी बाल्टी में 10-12 मिनट तक रखकर गरम कर लें या धूप में रखकर भी गरम कर सकते हैं। इस गरम किये गये शिवाम्बु को, करीब आधा सेर के मापवाले एक ऐसे बरतन में लें, जिसमें हाथ डुबाया जा सके। इससे दाहिने हाथ के पंजे पर मालिश शुरू करें। जब तक और जितना बरदाश्त हो सके, उतने जोर से पंजे पर शिवाम्बु को रगड़ें। जब पंजा सूख जाय तो उसे फिर भिगो लें। इस प्रकार सिर से लेकर पाँव के तलुवे तक विधिपूर्वक मालिश करें। शरीर के भिन्न – भिन्न अंगों पर मालिश का समय नीचे लिखे अनुसार रखें। इस प्रकार मालिश करने पर करीब डेढ़ घंटे में पूरे शरीर की मालिश होगी.
15 मिनट – सिर, माथे और चेहरे पर 5 – 5 मिनट
10 मिनट – पूरी गरदन पर
10 मिनट – दोनों हाथों पर – पंजे से कन्धे तक
20 मिनट छाती, दोनों पसलियों, पेट और पीठ पर
20 मिनट – दोनों पाँव – नीचे से ऊपर तक
15 मिनट- पाँव के दोनों तलुवे
इस प्रकार मालिश करने के बाद 30 से 45 मिनट तक खुली हवा और सूर्य की नरम धूप में बैठें और उसके बाद साधारण गरम पानी से स्नान करें। नहाने में साबुन का उपयोग न करें। बेसन या मिट्टी का उपयोग कर सकते में शरीर के किसी अंग में सूजन, घाव या फोड़े की वजह से दर्द हो तो वहाँ मालिश न करके शिवाम्बु में भींगे कपड़े की पट्टी रखनी चाहिए। इस प्रकार तीन – चार दिन तक मालिश करने से किसी – किसी मरीज को सरदी, कफ, दस्त – उल्टियाँ, चमड़ी पर फफोले या खुजली आदि की प्रतिक्रिया का होना सम्भव है। इससे घबड़ाना नहीं चाहिए। क्योंकि ऐसी प्रतिक्रिया से शरीर में जमा हुआ विकार शरीर से बाहर निकल जायगा और शरीर शुद्ध हो जायगा। ऐसी प्रतिक्रियाओं को खत्म करने के लिए अन्य कोई दवा लेने की आवश्यकता नहीं है फोड़े या खुजली मिटाने के लिए उस पर पुराने शिवाम्बु की पट्टी लगायें। शरीर के विभिन्न अवयवों – आँख, कान, नाक, गला, हृदय, फेफड़े और पेट में आमाशय, आँत, लीवर, किडनी, प्रोस्टेट और स्त्रियों के गर्भ आदि की बीमारी के लिए भी अन्य कोई अलग इलाज या दवा लेने की जरूरत नहीं है। क्योंकि’ शिवाम्बु’ पूरे शरीर की हर प्रकार की बीमारी के लिए यानी हर अंग की हर बीमारी के लिए रामबाण इलाज है। कुछ अंगों की बीमारी में विशेष उपचार की विधि निम्न प्रकार है :
अपना पेशाब पीने का क्या फायदा है?
आज हजारों मरीज शिवाम्बु – चिकित्सा’ यानी स्वमूत्र चिकित्सा से विविध प्रकार की बीमारियों को दूर कर रहे हैं. स्वमूत्र यानी अपने पेशाब से मलेरिया, इन्फ्लुएन्जा, टाइफाइड आदि बुखार, कॉलरा, दस्त, उल्टी आदि पेट की बीमारियाँ, क्षयरोग, चेचक जैसी छूत की बीमारियाँ, कैन्सर, ल्यूकेमिया, कोरोनरी थ्रोम्बोसिस, गैंग्रीन, ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, नेफाइटीस, प्रोस्टेट ग्लैण्ड, हृदय – रोग, दमा, मोतियाबिन्द, पीलिया आदि जैसी अनेक बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं. सुबह का पहला पेशाब सबसे उत्तम होता है.
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