सनातन धर्मग्रंथों में गाय को कामधेनु और माता की संज्ञा दी गयी है. आयुर्वेद में अनेक रोगों पर गोमूत्र और गोबर के प्रयोग का उल्लेख है. आयुर्वेद में गाय से प्राप्त दूध, दही, घृत (घी) मूत्र और गोबर को बहुत पवित्र और गुणकारी बताया गया है. इन्हीं 5 वस्तुओं के योग को पंचगव्य कहते हैं.
पंचगव्य क्या है
आयुर्वेद के अनुसार गाय से प्राप्त 5 चीज़ों, दूध, दही, घृत (घी) मूत्र और गोबर को पंचगव्य कहते हैं.
गोमूत्रं गोमयं क्षीरं गव्य माज्यं दधिनिच. युक्तमेतद्यथा योगं पंचगव्यमुदाहृतं..
अयुर्वेद के अनुसार पंचगव्य में सैकड़ों रोगों का नाश करने की शक्ति है. पंचगव्य सरलता से उपलब्ध होने के साथ उपयोग में भी काफी आसान है.
लम्बे समय तक दूषित भोजन करने, असंयमित जीवन शैली जीने से शरीर जब बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है, पंचगव्य उन बीमारियों को जड़ से बाहर निकाल देता है.
पंचगव्य बनाने की विधि | कई पंचगव्य उत्पाद (panchgavya products) उत्पाद बनाने की विधि
पंचगव्य panchgavya products बनाने के लिए गाय का दूध 200 ग्राम, घी 10 ग्राम, दही 15 ग्राम, मूत्र 50 ग्राम, और गोबर का रस 25 ग्राम लें. इन सभी वस्तुओं को अच्छी तरह से मिलाएं.
अब इस मिश्रण में 5 ग्राम शहद अच्छी तरह मिला लें. गाय का पंचगव्य तैयार है. इस प्रकार से तैयार पंचगव्य को 2-3 महीने लगातार लिया जाये, तो पुरानी से पुरानी बीमारी अच्छी हो जाती है.
इसी विधि से कई पंचगव्य उत्पाद (panchgavya products) जैसे पंचगव्य साबुन (panchgavya soap), पंचगव्य घी (panchgavya ghrit) आदि बनाये जाते हैं.
पंचगव्य से लाभ
आयुर्वेद के अनुसार गाय की रीढ़ की हड्डी में सूर्यकेतु नाडी होती है. वह गौ किरण शोषित करती है. इसी कारण गाय के दूध में स्वर्ण क्षार पाया जाता है.
इसी के साथ गाय का घी, दही, मूत्र और गोबर भी बहुत ही अधिक गुणकारी होता है. इसके पांचों घटकों के गुण एक-एक करके अध्ययन करते हैं
गौ मूत्र के फायदे, गुण और उपयोग
- गौमूत्र में कार्बोलिक एसिड होता है. इस कारण गौमूत्र एंटीसेप्टिक गुणों से भरपूर होता है. इस कारण गौमूत्र रखत में रहने वाले दूषित कीटाणुओं का नाश कर देता है.
- कार्बोलिक एसिड होने के कारण गौमूत्र विषाक्तता तथा घाव के संक्रमण को रोकता है.
- गौमूत्र में फोस्फेट, पोटाश, लवण, नाइट्रोजन, यूरिया और यूरिक एसिड होते हैं.
- जिन महीनों में गाय दूध देती है उसके मूत्र में लेक्तोज़ विद्यमान होता है, जो ह्रदय और मस्तिष्क के रोगों में बहुत लाभदायक होता है.
- आठ माह की गर्भवती गाय के मूत्र में पाचक रस अधिक होते हैं.
- गौमूत्र के प्रयोग से ह्रदय रोग ठीक होते हैं तथा मूत्र खुलकर आता है.
- फैटी लिवर (जिगर बढ़ना) होने पर एक कप पुनर्नवा के काढ़े में उतना ही गौमूत्र सुबह खाली पेट 2-3 महीने पीने से बिलकुल ठीक हो जाता है.
- खुजली, दाद एग्जिमा तथा अन्य त्वचा रोगों में गौमूत्र पीने तथा गौमूत्र के लेप करने से शीघ्र लाभ होता है.
गाय के गोबर के फायदे, गुण और उपयोग
- गाय के गोबर (गौमय) में मेंथोल, अमोनिया, फीनोल, इन्दोल, फार्मलीन, फास्फोरिक एसिड, चूना, मैग्नीशिया, सिलिका, नाइट्रोजन आदि महत्वपूर्ण घटक होते हैं.
- गाय के गोबर में बैक्टीरिया फेज़िज़ (रोगाणुओं और कीटाणुओं को खा जाने वाला तत्त्व) होता है. इसलिए गाँवों में प्राचीन काल से ही गाय के गोबर से दीवारों और फर्श को लीपने का प्रचलन है. इससे घर में रोगों के कीटाणु प्रवेश नहीं कर पाते हैं.
- गाय के ताजे गोबर के शरीर पर लेप करने से हैजा, तपेदिक (टीबी) और मलेरिया के कीटाणु तुरंत मर जाते हैं.
- गाय के गोबर में भी कार्बोलिक एसिड होता है, जो शरीर से विषाक्तता कम करने का काम करता है. कार्बोलिक एसिड सांप के काटने की चिकित्सा करने के काम आता है.
- ताजा गोबर यदि जले पर लगाया जाय तो जलन को शांत करता है. गाँव के लोग आग से जल जाने या चोट से घाव हो जाने पर गाय के गोबर का लेप कर लेते हैं. जिससे जलने और चोट का घाव ठीक हो जाता है.
- अपस्मार, मृगी, चक्कर, मस्तिष्क विकार, बेहोशी आदि रोगों पर गाय के दूध या तेल के तेल में गोबर मिलाकर मालिश करने से मस्तिष्क के तंतु निरोग हो जाते हैं.
- पेट में कीड़े होने पर गाय के गोबर की 20 ग्राम राख को एक कप पानी में घोलकर 2-3 दिन पिलाने से पेट के कीड़े बाहर निकल जाते हैं.
- गाय के गोबर की राख के महीन चूर्ण से सुबह-शाम दांत माजने से दांतों का पायरिया, मुंह की दुर्गन्ध तथा दांतों में कीड़े की समस्या दूर हो जाती है.
- गाय के गोबर की राख पौधों पर छिड़कने पर कीड़े नहीं लगते.
गाय के दूध के फायदे, गुण और उपयोग
बर्नर मक्फेडन अपनी पुस्तक ‘Miracle of Milk‘ में लिखते हैं – गाय का दूध कमजोरों को ताकतवर और रोगियों को निरोगी बनाने में सबसे पहले स्थान पर है.’
अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. एच. सी. शर्मन का अनुसन्धान है कि एक किलो गाय का दूध बल और शक्ति पैदा करने में आधा किलो मांस, एक किलो मछली, 750 ग्राम चिकन और दस अण्डों के बराबर है.
बहुत से लोगों को भ्रम है कि गाय का दूध खून से बनता है. गाय, बकरी, ऊंटनी आदि दूध देने वाले प्राणी जो खाते हैं उससे पहले रस बनता है. उस रस कुछ भाग पित्त से मिश्रित होकर जठराग्नि में पकता है. इसके बाद वह पित्त से मिश्रित होता है. पित्त से मिश्रित होकर दुग्धोत्पादक शिराओं में पहुँचता है. वहीँ दूध का निर्माण होता है.
विश्व के सभी प्राणी विज्ञ और चिकित्सक इस बात को मानते हैं कि आहार से रस बनता है और यह रस दूध देने वाली प्राणियों के शरीर में दो भागों में विभक्त हो जाता है. एक भाग दूध देने वाली शिराओं में जाता है, तथा दूसरा भाग रक्त बन जाता है. दुग्ध की शिराएँ रक्त की शिराओं से भिन्न होती हैं.
- जिसके आहार में गाय का दूध पर्याप्त मात्रा में रहता है, उन्हें प्रायः रोग नहीं होते. वे तेजस्वी तथा विद्वान होते हैं.
- गाय के दूध में मनुष्य के विकास के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्त्व होते हैं.
- गाय का दूध खून को बढाता है.
- गाय के दूध के दूध कल्प से बहुत से रोगों को ठीक किया जा सकता है.
गाय के दूध की दही के फायदे गुण और उपयोग
- आयुर्वेद में दही को परम गुणकारी कहा गया है.
- दही के नियमित सेवन से निरोगी शुक्राणु उत्पन्न होते हैं, तथा यह वीर्य को बढाता है.
- दही उदर को ठंडा रखता है. ह्रदय तथा मस्तिष्क को शांत रखता है.
- दही लीवर की शक्ति को बढाकर पाचन ठीक रखता है.
- गाय के दूध की दही तथा छाछ संग्रहणी, वात, कफ-नाशक, उदर रोग, अर्श नाशक होता है.
- दही का मक्खन भोजन और औषधि दोनों का काम करता है.
- दही को स्वर्ण और चांदी के बर्तनों में जमाकर खाया जाय तो व्यक्ति 100 साल तक निरोगी रहता है.