भारतीय शास्त्रों में पांच प्रकार की बलाओं का उल्लेख मिलता है: बला, अतिबला, नागबला, चिकना बला, और महाबला। इन सभी में से अतिबला एक ऐसी औषधि है, जो अपने बलवर्धक गुणों के कारण अद्वितीय मानी जाती है। यह औषधि भारतवर्ष से लेकर बलोचिस्तान, कंधार और ईरान तक के विभिन्न क्षेत्रों में खाली प्लॉट, खेत-खलिहान और सड़कों के किनारे आसानी से पाई जाती है। वर्षा वनों में यह पौधा 25 सेमी से लेकर 2500 सेमी तक की ऊंचाई तक बढ़ता है।
अतिबला के औषधीय गुण
अतिबला का नाम ही इसके प्रमुख गुण को दर्शाता है। यह एक बलवर्धक औषधि है। अतिबला हमारे शरीर के विभिन्न अंगों को ताकत प्रदान करती हैं:
- हृदय को बल देती है
- हड्डियों और मांसपेशियों को बल देती है
- मस्तिष्क को बल देती है
- धातु (वीर्य और रज) को बल देती
अतिबला मुख्य रूप से एक धातु पौष्टिक औषधि है और इसके गुण उष्ण वीर्य यानी गर्म प्रकृति के हैं। इसके औषधीय गुण इसकी जड़, तने की छाल, फूल, पत्ती और बीज में समान रूप से पाए जाते हैं। हालांकि, औषधि के रूप में इसके बीजों का उपयोग अधिक किया जाता है।
बीजों का विशेष उपयोग
अतिबला के बीजों को देशी घी में हल्की आंच पर भूनने के बाद उपयोग करना चाहिए। इससे उनकी उग्रता कम हो जाती है, और शरीर पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता।
वात और ज्वाइंट पेन के लिए अतिबला का प्रयोग
वात रोग और जोड़ों के दर्द के लिए अतिबला का एक विशेष प्रयोग है। इसका उपयोग निम्नलिखित विधि से किया जा सकता है:
सामग्री:
- अतिबला के 20 पत्ते
- निर्गुंडी के 7 पत्ते
- परिजात के 7 पत्ते
- घी में भुनी हुई काली मिर्च के 5 दाने
- सौंठ पाउडर चुटकी भर
विधि:
- सभी सामग्री को सिलबट्टे पर पानी की सहायता से पीस लें।
- इस मिश्रण को 1 लीटर पानी में डालकर धीमी आंच पर गर्म करें।
- जब पानी 250 ग्राम बच जाए, तो इसे छानकर गुनगुना कर लें।
- सुबह खाली पेट इस काढ़े का सेवन करें।
रात को सोते समय उचित मात्रा में त्रिफला चूर्ण लें। लगातार 45 दिन तक इस प्रयोग को करने से वात व्याधियों और जोड़ों के दर्द में आशातीत सुधार देखने को मिलता है।
महत्वपूर्ण सुझाव
अतिबला का उपयोग करते समय किसी अनुभवी वैद्य की सलाह अवश्य लें, ताकि यह औषधि सुरक्षित और प्रभावी रहे।
अतिबला जैसी प्राकृतिक औषधियां हमारे प्राचीन चिकित्सा विज्ञान की विरासत हैं। इनका सही उपयोग न केवल शारीरिक बल को बढ़ाता है, बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य में सुधार भी लाता है।