पाचन सम्बंधी बीमारी आईबीएस का आयुर्वेदिक इलाज

आज सभ्य समाज और आधुनिक जीवन में पाचन सम्बन्धी रोगों में आई.बी.एस.(ईरीटेबल वावेल सिन्ड्रोम) बीमारी अधिकांश लोगों में पायी जाती है। कई बार ये बीमारी पकड़ में नहीं आ पाती और हम गलत इलाज कराते रहते हैं।

आईबीएस रोग में आंतों की गति(movement) बाधित हो जाती है। इस रोग से पीडित व्यक्तियों के भोजन का पाचन तो होता है किन्तु आंतों में पचे हुये भाग के अंश विटामिन, ग्लूकोज, कैल्शियम आदि का अवशोषण नहीं हो पाता। जिसके कारण रोगी का शरीर दुर्बल, खून की कमी, हड्डियों में कमजोरी, मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है। दूसरी तरफ भोजन अधपचे रूप में रहकर झागयुक्त, चिकना, बदबूदान व कई बार आना शुरू हो जाता है। इस बीमारी में व्यक्ति की आंतों की मल फेंकने की शक्ति क्षीण हो जाती है।

आईबीएस रोग के कारण

  1. बार-बार खाने की आदत।
  2. भोजन में रेशेदार खाद्य पदार्थों का कम होना।
  3. मानसिक तनाव या अधिक व्यस्तता ।
  4. तले भुने खाद्य पदार्थों का भोजन में अधिक प्रयोग।
  5. देर रात को भोजन करके सो जाना।

आई.बी.एस. के लक्षण | आईबीएस की जांच कैसे की जाती है?

आईबीएस किसी जांच के द्वारा तय नहीं किया जा सकता। यह हमेशा लक्षणों के आधार पर ही तय किया जाता है। यदि निम्न लक्षण आपके शरीर में हैं, तो आपको आईबीएस हो सकता है।

  1. कई बार मल त्याग करना।
  2. मल त्याग करते समय जोर लगाना या ऊंगली डालकर मल बाहर निकालना।
  3. पेट में दर्द रहना ।
  4. नाभि के नीचे दर्द रहना।
  5. मल का हरड़ की गोली की तरह थोड़ा-थोड़ा निकलना।
  6. पेट में गुडगुड़ाहट या पेट के निचले भाग में हमेशा भारीपन रहना।
  7. मलत्याग में देर तक बैठे रहना।
  8. कभी-कभी दो-तीन दिन तक मल त्याग न होना।
  9. मल के साथ सफेद चिकना पदार्थ या आंव का निकलना।
  10. मल का पॉट से चिपकना ।
  11. खाना खाने के बाद पेट का फूलना।
  12. स्वभाव में चिड़चिड़ापन व वहमी होना।
  13. तनाव होते ही पेट में दर्द या सीने में जलन बढ़ जाना।
  14. कभी दस्त और कभी कब्ज की शिकायत होना।
  15. कभी पेट साफ न होना।

आई.बी.एस. में आहार | आईबीएस में क्या खाना चाहिए

रेशेयुक्त पदार्थ का प्रयोग इस रोग में काफी लाभ पहुंचाता है। रेशा या फाइबर आंतों में पहुंचकर मल की मात्रा में वृद्धि करता है जिससे मल त्याग में आसानी रहती है। फल व कच्ची सब्जियों में प्रचुर मात्रा में फाइबर पाया जाता है। सर्दी के मौसम में गाजर का प्रयोग गर्मी के मौसम में पत्तागोभी, मूली, खीरा, ककड़ी आदि का प्रयोग करना चाहिये। फलों में पपीता, मौसमी, संतरा, अमरूद, नाशपाती, बेल आदि का भरपूर प्रयोग करें।
चोकर युक्त आटे की रोटी व छाछ का नियमित सेवन करें। चाय की जगह दिन में 2-3 बार नींबू पानी शहद का प्रयोग करें, प्रतिदिन 2-3 लीटर पानी पीयें जिससे आंतों में नमी बनी रहे। सप्ताह में 1-2 दिन उपवास भी करें। जिससे आंव का पाचन हो जाये।

आईबीएस में परहेज | आईबीएस में क्या नहीं खाना चाहिए

दूध व दूध से बने खाद्य पदार्थ जिसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है इस बीमारी में नुकसान पहुंचाते हैं और आंव को बढ़ाते हैं। महीन पिसा आटा, बेसन, मैदा, चॉकलेट, तले भुने गरिष्ठ आहार, शीतल पेय, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ, अचार, चाय काफी आदि पदार्थों का परहेज करना चाहिये।

आईबीएस का आयुर्वेदिक इलाज

patanjali के बाबा रामदेव के अनुसार पतंजलि कुटजारिष्ट और कुटज घनवटी आईबीएस के लिए सबसे अच्छी दवा है।

आईबीएस की प्राकृतिक चिकित्सा

सुबह के समय खाली पेट का गर्म सेंक 3 मिनट व ठण्डा सेक 2 मिनट क्रमशः 3 बार करें। पेडू पर मिट्टी पट्टी 30 मिनट तक रखें, छाछ का एनिमा सप्ताह में तीन दिन लें रीढ़ पेट व सिर की मालिश करें। गर्म-ठण्डा कटि स्नान करें व पेट पर लपेट बांधे। इस रोग में कैस्टर ऑयल का टॉनिक एनीमा भी लाभदायक है। यह आंतों में चिपके हुये मल को साफ करता है। कभी-कभी ठण्डी चादर लपेट, ठण्डा कटि स्नान व शंख प्रक्षालन भी कर लेना चाहिये।

आईबीएस के लिए योगासन

  1. उदर शक्ति विकासक क्रियायें करें।
  2. प्रातःकाल खुली हवा में टहलें।
  3. प्राणायाम करें।
  4. भोजन के बाद 10 मिनट बायीं करवट लेटें 
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