सर्वांगासन की विधि, लाभ और सावधानियां

सर्वांगासन (sarvangasana) एक रहस्यपूर्ण आसन है जिसके अभ्यास से आश्चर्यजनक लाभ होते हैं। सर्वांगासन शब्द सर्व, अंग और आसन तीन शब्दों से मिलकर बना है. इसका अर्थ है सभी अंगों का आसन. इस आसन को करते समय शरीर के सभी अङ्गों का व्यायाम हो जाता है, इसलिए इसको सर्वांगासन कहते हैं.

सर्वांगासन की विधि | सर्वांगासन कैसे किया जाता है

एक मोटा कम्बल जमीन पर बिछा कर सर्वांगासन का अभ्यास करना चाहिये।

  • कम्बल पर पीठ के सहारे चित्त लेट जाएँ।
  • अब धीरे-धीरे दोनों टाँगों को उठायें।
  • टाँगों के साथ साथ कमर और धड़ भी वहाँ तक उठाएं कि पूरा शरीर एक सीध में खड़े हो जायें।
  • अब दोनों हाथों से कमर को पीछे से सहारा दे कर रोक दें, जिससे कुहनियाँ जमीन पर टिकी रहें।
  • ठोढ़ी छाती पर इस तरह लगा दें, जैसे जालन्धर बन्ध में लगाई जाती है।
  • आसन को इस तरह लगायें, जिससे पीठ का कुछ भाग, कंधे और गर्दन जमीन छूते रहें।
  • शरीर को सीधा रखें और इधर उधर हिलने-डुलने न दें।
  • पैर बिल्कुल सीधे रखें।
  • इस समय सामने वाली गर्दन की निचली स्नायु ग्रन्थि पर, जिसे अंग्रेजी में Thyroid कहते हैं, ध्यान जमायें।
  • जब तक सरलतापूर्वक साँस रोक सकें, साँस रोकें। इसके बाद धीरे-धीरे नाक की राह साँस निकाल दें।
  • उसके बाद सांस लेते रहें।
  • निर्धारित समय पूरा हो जाने पर शरीर को झटका दिये बिना बहुत धीरे-धीरे पैरों को नीचे लायें।
  • सर्यवांगासन करते समय इस बात की सावधानी रखनी आवश्यक है कि शरीर झटके से नीचे न आये. यह आसन बड़ी सफ़ाई के साथ करना चाहिये।
सर्वांगासन sarvangasana

इस आसन के करने में शरीर का सारा भार कंधों पर पड़ता है। असल में कुहनियों और कंधों के सहारे ही यह आसन किया जाता है। इस आसन को सुबह शाम दोनों समय कर सकते हैं। इस आसन को समाप्त करते ही तुरन्त मत्स्यासन करना चाहिये। सर्वांगासन करने से गर्दन के पीछे दर्द होने लगता है। मत्स्यासन करते ही यह दर्द दूर हो जायगा।

मत्सयासन matsyasana

सर्वांगासन कितनी देर करना चाहिए

सर्वांगासन दो मिनट से आरम्भ करके धीरे-धीरे 5 मिनट से 10-20 मिनट तक करना चाहिए। इस आसन मे छाती और पैर समकोण मे रहते हैं। समकोण बन जाने पर धीरे-धीरे साँस लेते रहना चाहिए.

सर्वांगासन के लाभ

  •  The Art of Living के अनुसार सर्वांगासन के अभ्यास से Thyroid gland नामक ग्रन्थि को बड़ा लाभ पहुँचता है. Thyroid gland के स्वस्थ रहने से रक्त संचार, श्वास क्रिया, जननेन्द्रिय इन्द्रियाँ, जठराग्नि और स्नायु केन्द्र आदि अपना काम ठीक-ठीक करते हैं।
  • गर्दन की स्नायु ग्रन्थि का कार्यसम्बन्ध मस्तिष्क की मांस पेशियों, गुर्दे, यकृत, प्लीहा और अण्डकोष की मांस पेशियों से है। अतः गर्दन की मांस-पेशी के स्वस्थ होने से और सब मांस-पेशियाँ स्वास्थरूप से काम करने लगती है और शरीर का स्वास्थ्य अपने आप ठीक हो जाता है। गर्दन की मांस पेशी के रोगी होते ही और सब मांस पेशियाँ सुस्त पड़ जाती हैं और सारा मांस-पेशी मण्डल दूषित हो जाता है।
  • सर्वांगासन के अभ्यास से गर्दन की मांसग्रन्थि स्वस्थ रहती है और शरीर के अन्य अङ्ग अपना काम सुचारु रूप से करते रहते हैं।
  • इस आसन के करते ही मेरुदण्डस्थित स्नायुओं के मूल में बड़े परिमाण में रक्त पहुँच जाता है जिससे नसें मजबूत होती हैं और मेरुदण्ड दृढ होता है। इस आसन के अतिरिक्त और कोई ऐसा साधन नहीं है जिससे मेरुदण्ड स्थित स्नायु मूलों में पर्याप्त मात्रा में रक्त पहुँच सके।
  • इस आसन से मेरुदण्ड लचीला हो जाता है। मेरुदण्ड के लचीले रहने से व्यक्ति युवा बना रहता है. सर्वांगासन के अभ्यास से हड्डियाँ जल्दी कड़ी नहीं पडने पातीं, जिसके फल से बहुत दिनों तक यौवन शरीर में रहता है।
  • सर्वांगासन के अभ्यास से बुढ़ापे की आफतें दूर रहती हैं।
  • इस आसन के करने से ब्रह्मचर्य रक्षा में बड़ी सहायता मिलती है। शोर्षासन की तरह इस आसन को करने वाला भी ऊर्ध्वरेता हो जाता है। इस आसन के निरन्तर अभ्यास से स्वप्नदोष नहीं होते।
सर्वांगासन की विधि, लाभ और सावधानियां
सर्वांगासन की विधि, लाभ और सावधानियां

यह भी देखें : बस्ती क्रिया के लाभ

  • जिन लोगों के पुंसत्व का नाश हो गया हो, इस आसन के अभ्यास से उनकी नपुंसकता नष्ट होकर उनमें पुंसत्व फिर से आ जाता है।
  • यह आसन रक्तशोधक और स्नायुओं का बलदाता है। इस आसन के अभ्यास से स्नायुमण्डल उत्तेजित हो उठता है। 
  • इस आसन से सस्ता, सरल और सरलता से उपलब्ध और कोई ऐसा एक साधन नहीं है जिससे रक्तविकार, स्नायुविकार और मन्दाग्नि आदि रोगों को जड़ से अच्छा किया जा सके।
  • यदि किसी के पास अन्य दर्जनों आसनों के अभ्यास के लिये समय नहीं है, तो केवल शीर्षासन और पश्चिमोत्तानासन के साथ सर्वांगासन कायमपूर्वक रोज अभ्यास करने से कई रोगों से मुक्ति मिल जाती है.
  • सूजाक जैसे भयङ्कर जननेन्द्रिय के रोगों तक में इस आसन के अभ्यास से लाभ पहुँचता है।
  • गर्भाशय सम्बन्धी रोग इसके अभ्यास से नष्ट होते हैं। स्त्रियाँ भी बिना किसी समस्या के इस आसन का अभ्यास कर सकती हैं।
  • सर्वांगासन से कुंडलिनी जाग उठती है.
  • इस आसन को करने से जठराग्नि प्रज्वलित हो जाती है।
सर्वांगासन से कुण्डलिनी जागरण
  • सर्वांगासन के नित्य अभ्यास से पुरानी अपच, कब्ज आदि आँतों से सम्बन्ध रखने वाले रोग ठीक हो जाते हैं।
  • इस आसन से पिट्यूटरी, एड्रीनल एवं थायरायड ग्लैंड को बहुत लाभ मिलता है.
  • इस आसन से पायरिया, बाँझपन, क्षीण स्मृति, आँख, नाक, कान गला के रोग नष्ट होते हैं.
  • टीबी, दमा, स्नोफीलिया, अर्थराइटिस, गाउट, मधुमेह, डायबिटीज़, आदि सभी रोग ठीक होते हैं.
  • इस आसन से शरीर चुस्त तथा फुर्तीला बनता है तथा आलस्य दूर होता है. शरीर में उत्साह, सुन्दरता बढती है. व्यक्ति सुडौल तथा स्वस्थ हो जाता है.
  • इस आसन को करने से मोटापा भी कम होता है.
  • स्त्रियों में रजनोवृत्ति सम्बन्धी समस्याएं इस आसन से दूर होती हैं.
  • इस आसन से लीवर, प्लीहा, फेफड़ा, किडनी और पेशाब आधी समस्त रोग ठीक होते हैं.
  • पाइल्स रोग में भी इस आसन को करने से लाभ होता है.

सर्वांगासन में सावधानियां

  • मेरुदंड के रोगी तथा रीढ़ की हड्डी के रोगी, या जिनकी रीढ़ की हड्डी टूटी हो, वे इस आसन को न करें.
  • हृदय रोगी और उच्च रक्तचाप के रोगी भी इस आसन को न करें.
  • गर्भवती स्त्रियाँ इस आसन को न करें.
  • मासिक धर्म के समय भी स्त्रियाँ आसन न करें.
  • सर्वांगासन के तुरंत बाद मत्स्यासन अवश्य करना चाहिए.
  • सुबह जॉगिंग आदि करने के बाद जब थके हों, तब इस आसन को नहीं करना चाहिए.

Healthnia