पश्चिमोत्तानासन के चमत्कार

पश्चिमोत्तानासन एक बहुत ही अच्छा आसन है. हठ योग में पश्चिमोत्तानासन की बड़ी महिमा गायी गई है. इसको युवा से लेकर वृद्ध तक कोई भी कर सकता है. यह हर उम्र के लोगों की स्वास्थ्य समस्याओं में फायदा करता है.

युवाओं में पश्चिमोत्तानासन जहाँ ब्रह्मचर्य में सहायता करता है, वहीं वृद्धों के मेरुदंड को लचीला बनाकर उनको रोगों से दूर करता है. पश्चिमोत्तानासन को चमत्कारी आसन कहा जाता है. आइये देखते हैं पश्चिमोत्तानासन के चमत्कार.

पश्चिमोत्तानासन करने की विधि

नीचे दिए गए चित्र के अनुसार जमीन पर बैठ कर अपनी टांगों को फैला लें । उसके बाद सांस निकालकर घुटनों को बिना मोड़े धड़ को आगे झुकाकर पैरों के अँगूठों को पकड़ें। बिना झटका दिये धीरे-धीरे धड़ को इतना झुकायें कि माथा घुटनों को छू ले। झुकना धीरे-धीरे ही चाहिये.

जब धड़ को झुकायें, तब पेट को भीतर खींचें। उस समय तक साँस को रोके रखना चाहिये, जिस समय तक कि माथे को घुटने पर से हटा कर अपनी पुरानी जगह ले जाकर धड़ को सीधा करके न बैठ जायें। सीधे बैठ जाने पर ही साँस लेना चाहिये।

पश्चिमोत्तानासन करने की विधि
पश्चिमोत्तानासन करने की विधि

पश्चिमोत्तानासन कितनी देर करें

पश्चिमोत्तानासन कितनी देर करें को 5 सेकन्ड से आरम्भ करके धीरे-धीरे इसका समय 10 मिनट तक बढ़ाना चाहिये. 5 मिनट करना  लाभप्रद रहेगा। जो लोग पश्चिमोत्तानासन बिल्कुल ही न कर सकें, उन्हें अर्ध पश्चिमोत्तानासन करना चाहिये। इसमें एक पैर फैला कर दोनों हाथों से एक ही  पैर का अंगूठा पकड़ कर माथे को घुटने से बुलाना चाहिये।

एक पैर पर अभ्यास करके दूसरे पैर पर अभ्यास करना चाहिये। पश्चिमोत्तान की अपेक्षा यह आसन अधिक सरलतापूर्वक हो जायगा। कुछ दिनों के अभ्यास के बाद जब रीढ़ की हड्डी कुछ मुलायम हो जाय, तब पश्चिमोत्तान का अभ्यास करना चाहिये। योगाभ्यास में सदा कौशल से काम लेना होता है।

अर्ध पश्चिमोत्तानासन
अर्ध पश्चिमोत्तानासन

पश्चिमोत्तानासन से लाभ | पश्चिमोत्तानासन के चमत्कार

पश्चिमोत्तानासन एक ऐसा आसन है, जिससे शरीर में सर्वाधिक लाभ होता है. इसके लाभ इतने हैं कि इनको पश्चोमोत्तानासन के चमत्कार ही कहा जायेगा.

  • इसके करने से ब्रह्म नाड़ी लगती है और जठराग्नि प्रज्वलित होती है।
  • इस आसन को करने से चर्बी कम होकर मोटी कमर पतली पड़ जाती है। बढ़ी हुई तोंद या मोटे पन के लिए तो यह आसन अचूक दवा है।
  • पश्चिमोत्तानासन के करने से बढ़ी हुई तिल्ली और बढ़ा हुआ जिगर घटकर अपने प्राकृतिक स्वरूप में आ जाते हैं।
  • सर्वांगासन से जिस तरह Endocrin glands उत्तेजित होते हैं, उसी तरह पश्चिमोत्तानासन के करने से उदराङ्ग अर्थात गुदा, यकृत, पित्त प्रणाली आदि उत्तेजित होते हैं।
  • इस आसन के करने से आँतों के सिकुड़ने और फैलने का काम ठीक-ठीक होने लगता है। आंतों के ठीक ठीक सिकुड़ते और फैलते रहने से ही भोजन किया हुआ अन्न ठीक से रसों में परिवर्तित होता है और आंतें बचे हुए अन्न को सिकोड़ते और फैलाते हुए आते मलाशय तक ले जाती हैं, जहाँ से वह मल के रूप में शरीर से बाहर निकल जाता है।
  • पश्चिमोत्तानासन के करते ही कब्ज़ ठीक होने लगता है,  यकृत की सुस्ती दूर होती है, जिससे सीने और गले में होने  वाली जलन ख़त्म हो जाती है और मन्दाग्नि दूर होती है।
  • इसके करने से कमर की जकड़न का रोग और मांसपेशियों की गठिया दूर होती है। बवासीर और बहुमूत्र रोग भी इस आसन से अच्छे होते हैं।
  • पेट की कटि-सम्बन्धी मांस पेशियाँ, मूत्राशय, कमर के स्नायु तथा ज्ञानतन्तु मंडल आदि इस आसन के अभ्यास से उत्तेजित हो उठते हैं, और अपना-अपना काम ठीक करते हुए स्वस्थ रहते हैं।
  • इस आसन से अपच एवं बदहजमी दूर होती है. आंतें अपना काम ठीक ढंग से करती हैं. इससे मोटापा निश्चित रूप से दूर हो जाता है.
  • इससे रीढ़ की हड्डी लचीली बनती है, जिससे बुढ़ापा देर में आता है. स्त्रियों का मासिक धर्म नियमित होता है.
  • इस आसन से नाभि का टलना दूर होता है, पुरुष और स्त्रियों के यौन रोग दूर होते हैं, मोटापा दूर होता है तथा शरीर सुडौल बनता है.
  • इस आसन से सौंदर्य तेज एवं बुद्धि की वृद्धि होती है.
  • डायबिटीज एवं हाई ब्लड प्रेशर तथा लो ब्लड प्रेशर दूर होता है.
  • पीठ एवं पेट की हड्डियों एवं नसों पर पूरा तनाव पडने से उनमें रक्त संचार ठीक रूप से होता है.

पश्चिमोत्तानासन में सावधानियां

  • स्त्रियाँ गर्भकाल एवं रजस्वला की स्थिति में इसे न करें.  
  • पश्चिमोत्तानासन में अधिकता नहीं करनी चाहिए, तथा इसे तेजी के साथ भी नहीं करना चाहिए। नहीं तो कब्ज़ बढ़ सकती है.
  • रीढ़ की हड्डी यदि टूटी हो या मेरुदंड सम्बन्धी कोई जटिल समस्या हो तो इस आसन को न करें.
  • पश्चिमोत्तानासन को करते समय जल्दी और माथे को घुटनों से लगाने की जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए. पहले ही दिन माथा घुटने नहीं छुएगा। नित्य अभ्यास करने से ही सफलता मिलेगी। अभ्यास करते-करते चेहरा दोनों घुटनों के बीच में चला जाने लगेगा। इस काम में जल्दी नहीं करनी चाहिये। सिर को दोनों बाँहों के बीच में रख कर झुकाना चाहिये। पहले यह प्रयत्न करें कि सिर बाँहों के बराबर तक आकर झुकने लगे। वे लोग, जिनके रीढ़ की हड्डी कड़ी नहीं पड़ी है, पहले ही प्रयत्न में अपना सिर घुटनों से मिला सकते हैं। अधिक अवस्था वाले लोगों को महीने-पन्द्रह दिन के अभ्यास से ही सफलता मिलेगी। इसके बाद आपको पश्चिमोत्तानासन के चमत्कार देखने को मिलेंगे.
Healthnia