शुगर, मधुमेह, Diabetes (डायबिटीज) के लक्षण, इलाज और सावधानी

डायबिटीज के लक्षण और उपाय (शुगर और डायबिटीज में क्या अंतर है) मधुमेह या डायबिटीज (Diabetes) को आमतौर पर शुगर की बीमारी के नाम से भी जाना जाता है। शुगर यानी मधुमेह भारत में एक बड़ी समस्या बन चुकी है। हमारे देश में लगभग 6 करोड़ से अधिक लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। इस बीमारी में खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में इंसुलिन नामक हार्मोन के द्वारा भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। मधुमेह यानी डायबिटीज से पीड़ित लोगों के शरीर में इंसुलिन की मात्रा पर्याप्त नहीं होती या उनके शरीर द्वारा बनाया गया इंसुलिन पूरी तरह से काम नहीं करता इसीलिए शरीर की कोशिकाएं शुगर को absorb नहीं कर पाते और खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है।

Table of Contents

मधुमेह या शुगर कितने तरह का होता है

मधुमेह मुख्यतः तीन प्रकार की होती है –

टाइप 1 मधुमेह या टाइप 1 डायबिटीज

स प्रकार के मधुमेह या डायबिटीज को इंसुलिन पर निर्धारित मधुमेह या बच्चों किशोरावस्था व युवा लोगों में अचानक प्रारंभ होने वाली मधुमेह या डायबिटीज भी कहते हैं इस प्रकार की मधुमेह (शुगर) की शुरुआत बच्चों के शरीर में पेंक्रियाज़ द्वारा इंसुलिन का पूर्ण निर्माण न होने की वजह से होती है। टाइप 1 मधुमेह या टाइप 1 डायबिटीज के मरीज को अपनी बीमारी को नियंत्रण में रखने व जीवित रहने के लिए इंसुलिन की आवश्यकता पड़ती है। इंसुलिन बंद करने पर जान का खतरा हो सकता है।

टाइप 2 मधुमेह टाइप 2 डायबिटीज

इसे वयस्क यानी बड़े लोगों में होने वाली मधुमेह या डायबिटीज कहते हैं। इस अवस्था में शरीर के अंदर इंसुलिन का उत्पादन तो होता है, परंतु उसकी मात्रा शरीर की जरूरत को पूरा करने के लिए पपर्याप्त नहीं होती। परिणाम स्वरूप शरीर की कोशिकाएं शुगर को ऊर्जा के स्रोत में प्रयोग नहीं कर पातीं। इस कारण खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। टाइप 2 मधुमेह अधिकतर 40 या उससे अधिक की आयु के लोगों में होती है पर यह जल्दी भी हो सकती है।

गर्भावस्था में होने वाली मधुमेह या डायबिटीज | महिलाओं में शुगर के लक्षण

  • इस प्रकार की मधुमेह महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान होती है। इसे Gestational मधुमेह कहते हैं। यदि ऐसी गर्भवती महिलाओं की स्थिति की ध्यानपूर्वक देखभाल न की जाए, तो जटिलताओं का खतरा रहता है।
  • गर्भावस्था के समय यदि खून में शुगर की मात्रा अधिक हो, तो गर्भ में शिशु का वजन अधिक बढ़ सकता है। इसकी वजह से प्रसव में कठिनाई हो सकती है, और मां और बच्चे को प्रसव के समय क्षति पहुंच सकती है।
  • प्रसव के पश्चात मधुमेह स्वयं ही सामान्य हो जाती है, परंतु कुछ महिलाओं में मधुमेह प्रसव के बाद भी रह सकती है। जिन महिलाओं में गर्भावस्था के समय मधुमेह होती है, उनमें जीवन में आगे जाकर यह बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है।

मधुमेह या डायबिटीज के लक्षण क्या होते हैं

शुरुआत में अधिकतर मधुमेह से पीड़ित मरीजों में कोई लक्षण नहीं होते। कई लोगों में तो इसका पता अचानक ही लगता है, जब किसी अन्य बीमारी के लिए खून की जांच करवाई जाती है. जैसे कि ऑपरेशन से पहले।
आमतौर पर मधुमेह में पाए जाने वाले लक्षण निम्न हैं –

  • बार बार पेशाब लगना
  • ज्यादा प्यास लगना
  • बहुत अधिक भूख लगना
  • वजन का असामान्य रूप से कम होना
  • जल्दी थक जाना
  • चक्कर आना
  • चिड़चिड़ा होना
  • ठीक से नींद ना आना
  • आंखों की रोशनी कमजोर होना या धुंधला दिखना
  • हाथ पैरों में झनझनाहट या सुन्न होना
  • बार-बार त्वचा मसूड़े व पेशाब का संक्रमण होना
  • चोट या घाव का देर से भरना या ठीक होना

मधुमेह को जन्म देने वाले कारण

ऐसे कई कारक हैं, जिनकी वजह से मधुमेह या डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है। इनमें से कुछ में बदलाव लाना संभव है और कुछ में नहीं। एक व्यक्ति में एक साथ कई जोखिम कारक भी हो सकते हैं और अधिक कारक होने से मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है।

पारिवारिक इतिहास – यदि किसी परिवार में किसी को यानी माता पिता या भाई बहन को मधुमेह है, तो परिवार में अन्य रक्त संबंधियों को मधुमेह होने की संभावना अधिक होती है।

लिंग – युवा आयु के लड़के व लड़कियों में मधुमेह की संभावना लगभग समान रहती है। परंतु इसके बाद 30 वर्ष की आयु तक महिलाओं में मधुमेह की संभावना अधिक हो जाती है। 45 से 65 वर्ष के बीच की आयु में यह संभावना महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले लगभग 2 गुना हो जाती है

शारीरिक वजन – आवश्यकता से अधिक शारीरिक वजन होने पर टाइप टू मधुमेह की संभावना अधिक होती है। लगभग 75% रोगियों का वजन 9 से 14 किलोग्राम अधिक पाया गया है।

शारीरिक असक्रियता – जो लोग शारीरिक परिश्रम करते हैं, उनमें मधुमेह की बीमारी कम होती है। इसके विपरीत आराम की जिंदगी बसर करने वाले लोगों में मधुमेह की संभावना अधिक होती है

तनाव – तनाव की स्थिति में मधुमेह की बीमारी की शुरुआत हो सकती है।

खाने पीने में दोष – पौष्टिक व संतुलित आहार का न खाना भी मधुमेह का एक कारण है. अधिक घी-तेल वाले भोजन का सेवन करने से भी मधुमेह का खतरा बढ़ता है।

डायबिटीज कम करने के कारक

जिन तरीकों से डायबिटीज कम की जा सकती है वह हैं –

  • मोटापा खासकर कमर का कम करना
  • सक्रिय जीवन शैली अपनाना
  • तंबाकू का सेवन कम करना
  • शराब का सेवन कम करना
  • अधिक चर्बी और घी तेल युक्त भोजन करना
  • खून में चर्बी की मात्रा कम करना। जैसे Triglyceride ट्राइग्लिसराइड की मात्रा 250 mg/dl से कम करना और HDL कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 35 mg/dl से कम करना

किन लोगों को मधुमेह का खतरा अधिक होता है

  • यदि परिवार के सदस्यों में किसी को मधुमेह हो, जैसे माता-पिता या भाई-बहन आदि, तो मधुमेह का खतरा अधिक होता है।
  • अधिक वजन वाले मोटे व शारीरिक तौर पर सक्रिय लोगों को टाइप 2 मधुमेह होने का खतरा अधिक होता है
  • जिन महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान मधुमेह की समस्या रही हो उन्हें जीवन में टाइप टू मधुमेह होने का खतरा अधिक होता है

मधुमेह के अन्य खतरों के कारण

  • दिल या खून की नलिका की बीमारी का होना
  • उच्च रक्त चाप
  • खून में एच डी एल कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 35 mg/dl से कम या ट्राइग्लिसराइड की मात्रा 250 mg/dl से अधिक होना

मधुमेह की जांच कैसे की जाती है

मधुमेह की जांच मुख्यतः तीन प्रकार से की जाती है

फास्टिंग प्लाजमा ग्लूकोस टेस्ट (Fasting Plasma Glucose Test-FPGT) या खाली पेट खून की जांच

इस प्रकार की जांच खाना खाने के 8 घंटे के पश्चात खून के द्वारा की जाती है। यदि इस समय खून में ग्लूकोज की मात्रा 126 मिलीग्राम से अधिक हो, तो इसे मधुमेह माना जाता है

ओरल ग्लूकोस टोलरेंस टेस्ट (Oral Glucose Tolerance Test – OGTT)

इस जांच को करने के लिए सबसे पहले फास्टिंग प्लाजमा ग्लूकोस टेस्ट का होना अनिवार्य है इस टेस्ट को करने के बाद व्यक्ति को 75 ग्राम ग्लूकोस बुलाया जाता है उसके 2 घंटे बाद दोबारा खून का नमूना लिया जाता है इस प्रक्रिया से पता लगाया जाता है कि किसी व्यक्ति को मधुमेह है या नहीं इस प्रक्रिया के बाद यदि खून में ग्लूकोज की मात्रा 200 mg/dl से अधिक है, तो मधुमेह की बीमारी का होना माना जाता है।

ग्लाइसिटेड हीमोग्लोबिन टेस्ट (Glycated Hemoglobin Test -HbAlc)

इस जांच में खून में पिछले 3 महीने के दौरान रही शुगर की मात्रा का पता चलता है। मधुमेह के मरीज के लिए यह जांच बहुत फायदेमंद होती है, क्योंकि इस जांच से इस बात का पता लगाया जाता है कि मरीज जिन दवाइयों का सेवन कर रहा था। वह किस स्तर तक काम कर रही हैं। इस जांच को किसी भी समय किया जा सकता है। इस जांच के लिए भूखे पेट का होना या ग्लूकोस पीने की आवश्यकता नहीं होती। HbAlc का सामान्य स्तर 5.7% होता है।

खून में शुगर के स्तर का अर्थ

जांच प्रीडायबिटिज (मधुमेह से पहले की अवस्था)
(ऐसे व्यक्ति में अभी डायबिटीज नहीं है पर आगे जाकर हो सकती है)
डायबिटीज (शुगर)
Fasting Plasma Glucose Test
खाली पेट ग्लूकोज की जांच
100-125 mg/dl
(Impaired Fasting)
126mg/dl
Oral Glucose Tolerance Test (OGTT)
ओरल ग्लूकोज टोलरेंस टेस्ट
140-199 mg/dl
(Impaired OGTT)
200 mg/dl
HbA1c5.7 – 6.4%6.5%
उपचार ◘ खानपान में बदलाव
◘ शारीरिक सक्रियता
◘ डॉक्टर द्वारा बटीए अनुसार इलाज
◘ खान-पान में परहेज
◘ शारीरिक सक्रियता
◘ नियमित जांच

प्री-डायबिटीज (मधुमेह से पहले की अवस्था) क्या होती है

  • कई लोगों में खाली पेट खून की जांच में शुगर की मात्रा मधुमेह की बीमारी के स्तर यानी 126 mg/dl से कम होती है परंतु ओरल ग्लूकोस टोलरेंस ओजीटी जांच असामान्य होती है।
  • ऐसे व्यक्तियों में मधुमेह एवं दिल की बीमारी होने का खतरा अधिक रहता है।
  • अगर समय पर बचाव किया जाए तो मधुमेह की बीमारी से बचा जा सकता है।

शुगर के रोग की जटिलताओं के बारे में जानकारी

खून में शुगर की मात्रा को नियंत्रित ना किया जाए तो इससे शरीर के कई अंगों को हानि हो सकती है। लंबे समय तक अनियंत्रित मधुमेह से आंखों और तंत्रिकाओं को नुकसान हो सकता है। मधुमेह पीड़ित मरीजों में इसकी जटिलता के बारे में जानकारी की कमी है।

डायबिटीज में आंखों की समस्याएं

  • मधुमेह के कारण आंखों की रक्त धमनियां कमजोर पड़ जाती हैं या उन में रुकावट आ जाती है जिससे देख पाने की क्षमता कम हो जाती है।
  • आंखों के इन जटिलताओं का शुरू में पता नहीं चल पाता इसीलिए यह बहुत आवश्यक है कि साल में एक बार आंखों की जांच करवाई जाए ताकि समय पर इलाज हो सके और अंधेपन को रोका जा सके
  • मधुमेह के अधिकतर मरीजों में रेटिनोपैथी हो सकती है जिसके कारण नजर का कम होना या अंधापन हो सकता है मधुमेह के मरीजों में काला मोतिया होने का खतरा आम लोगों के मुकाबले अधिक रहता है कम उम्र में सफेद मोतिया होने की संभावना होती है
  • खून में शुगर की मात्रा और साथ में उच्च रक्तचाप व ज्यादा कोलेस्ट्रोल की मात्रा रेटिनोपैथी का प्रमुख कारण होता है
  • यदि आंखों की नियमित जांच करवाई जाए और शुगर की मात्रा नियंत्रित रखी जाए तो रेटिनोपैथी से बचा जा सकता है
  • गुर्दे को होने वाले नुकसान का जल्दी पता लगाया जा सकता है और इलाज भी हो सकता है इसलिए यह जरूरी है कि मरीज खून में यूरिया की जांच साल में एक बार अवश्य करवाएं
  • आम लोगों के मुकाबले मधुमेह के रोगियों में गुर्दे की बीमारी होने की संभावना अधिक होती है
  • यदि खून में शुगर की मात्रा व उच्च रक्तचाप को नियंत्रित रखा जाए तो गुर्दे की बीमारी का खतरा बहुत कम किया जा सकता है।

डायबिटीज में तंत्रिका तंत्र की क्षति और अन्य समस्याएं

तंत्रिकाओं की क्षति होने को न्यूरोपैथी कहते हैं। जब खून में शुगर की मात्रा बहुत ज्यादा हो जाती है तो तंत्रिकाओं की कोशिकाओं में सूजन आ जाती है। समय के साथ तंत्रिकाएं शरीर के अन्य भागों को संकेत भेजने की क्षमता खोने लगती हैं। इसकी वजह से और समस्याएं पैदा होने लगती हैं जैसे –

  • पैरों या शरीर के निचले भाग में जलन या महसूस होना
  • पेट और आंतों की क्रिया में बदलाव आने लगना
  • जब तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचता है तो पैर में चोट लगने पर कोई दर्द महसूस नहीं होता और चोट लगने पर जख्म होने का खतरा बढ़ जाता है जब तक समस्या का पता चलता है तब तक घाव बुरी तरह से संक्रमित हो सकता है
  • ऐसे मरीजों के जख्म जल्दी नहीं भरते। कभी-कभी हालात ऐसे गंभीर हो जाते हैं कि मरीज को अपने पैर या डांग तक कटवाने पड़ जाते हैं।

न्यूरोपैथी के मरीज को यह सलाह दी जाती है कि यदि ऐसा हो रहा है तो निम्न कार्य करिए –

  • पैर फटने से बचाव के लिए अपनी त्वचा पर क्रीम लगाएं
  • नाखून सावधानी से काटें
  • सही साइज के व आरामदायक जूते पहने

शुगर से दिल का दौरा तथा लकवा (स्ट्रोक)

उच्च रक्तचाप कोलेस्ट्रॉल और खून में शुगर की मात्रा अनियंत्रित होने से मधुमेह के मरीज में दिल का दौरा पड़ने और लकवा मारने का खतरा अधिक हो जाता है. इसलिए मधुमेह के कारण हृदय रोग से बचने के लिए –

  • क्रियाशील रहे
  • अपना ब्लड प्रेशर न बढ़ने दें
  • अपना वजन भी ना बढ़ने दें
  • खानपान की सही आदतें अपनाएं
  • अपने खून में शुगर की मात्रा व कोलेस्ट्रोल तय सीमा में रखें
  • शराब व तंबाकू का सेवन ना करें

मधुमेह से बचाव

मधुमेह से बचाव संभव है यह तीन चरणों में होता है

प्राथमिक बचाव –

  • जिन लोगों में अभी मधुमेह नहीं हुआ है, लेकिन उनकी उम्र 40 से ऊपर है उनको यह सलाह दी जाती है कि स्वस्थ जीवन शैली अपनाई जाए जैसे कि पर्याप्त व्यायाम उचित खानपान और वजन पर नियंत्रण।
  • यदि आपकी जीवन शैली इस प्रकार की है कि आपका शरीर सक्रिय नहीं रहता, या आप का रक्तचाप नियंत्रित नहीं रहता, या आपका वजन अधिक है, तो तुरंत अपनी जांच कराएं ताकि समय से ही है बीमारी पकड़ी जा सके।
  • खान-पान पर नियंत्रण रखें। शरीर की जरूरत के हिसाब से संतुलित भोजन का सेवन करें। भोजन में अनाज, दालें, हरी पत्तेदार सब्जियां, मौसमी सब्जी, फल, दूध, दही से बनी चीजों का सही मात्रा में सेवन करना चाहिए।
  • प्रतिदिन निश्चित समय पर संतुलित आहार का सेवन करें।
  • रोटी बनाने में आटे के साथ चोकर का भी प्रयोग करें।
  • कम घी तेल वाला व अधिक रेशेदार भोजन करें।
  • सेब नाशपाती जैसे फलों का सेवन बिना छिलका उतार ही करें, तथा मौसमी व संतरे जैसे फलों का गूदा फेंकने के बजाय संपूर्ण फल खाएं।
  • अपने भोजन में अंकुरित अनाज भी शामिल करें।
  • शारीरिक तौर पर सक्रिय लोगों में शुगर का खतरा अधिक होता है शुगर से बचने के लिए सक्रिय जीवनशैली अपनाएं और नियमित व्यायाम करें।

माध्यमिक बचाव

माध्यमिक बचाव का अर्थ है मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों को जटिलताओं से बचाना। मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  • संतुलित खानपान अपनाएं यानि कम घी तेल वाला व अधिक रेशेदार भोजन करें।
  • समय पर वह सही दवाई लें।
  • वजन को नियंत्रित रखें।
  • संतुलित व्यायाम करें।
  • अपने खून में शुगर की मात्रा को नियंत्रण में रखें।

मधुमेह के रोगियों में स्वास्थ्य संबंधित क्या आपातकालीन स्थितियां हो सकती हैं?

अगर खून में शुगर की मात्रा नियंत्रण में नहीं है तो मरीज को हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia) हो सकता है। इस स्थिति में खून में शुगर की मात्रा असाधारण रूप से कम हो जाती है यानी 70 mg/dl से भी कम। ऐसा तब होता है, जब मरीज ने शुगर की दवाई ज्यादा मात्रा में ले ली हो या उसने कम मात्रा में खाना खाया हो। अधिक व्यायाम करने से भी ऐसा हो सकता है।

शुगर से पीड़ित व्यक्ति स्वयं की देखभाल कैसे करें?

यदि किसी को शुगर की बीमारी हो जाए तो यह कभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकती डायबिटीज को केवल नियंत्रित ही किया जा सकता है। मरीज को अपने देखभाल स्वयं करने की आदत डालनी चाहिए इसका अर्थ है कि वह इस तरह की दिनचर्या अपनाएं जिससे शुगर को कंट्रोल में रखा जा सके। इसके लिए –

  • मरीज को कम चीनी और कम भी तेल का भोजन करना चाहिए।
  • नियमित रूप से अपने खून में शुगर की मात्रा की जांच करनी चाहिए
  • अधिक रेशेदार भोजन करना चाहिए।
  • नियमित व्यायाम करना चाहिए।
  • नियमित रूप से दवाई लेना चाहिए।
  • पैरों की नियमित देखभाल करनी चाहिए।
  • शारीरिक रूप से सक्रिय रहना चाहिए।
  • अपने शरीर में आ रहे छोटे-छोटे बदलावों के प्रति सचेत रहना चाहिए।
  • मरीज के परिवार के सदस्य उसके डायबिटीज के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उनको भी मरीज के खानपान, शारीरिक सक्रियता, नियमित रूप से दवाई का सेवन और तनाव मुक्त रहने में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
  • शुगर के मरीज को हमेशा अपना पहचान पत्र अपने साथ रखना चाहिए जिस पर टेलीफोन नंबर लिखा हो जो आपातकाल या दुविधा के समय काम आ सके।

डायबिटीज में क्या खाना चाहिए? | शुगर में कौन से फल खाने चाहिए?

शुगर के रोगी को के लिए खानपान में सावधानी अनिवार्य है। आहार उनके वजन और खून में शुगर की मात्रा को प्रभावित करता है। शुगर के मरीज अपने प्रतिदिन के खानपान में कुछ बदलाव लाकर अपनी बीमारी को नियंत्रण में रख सकते हैं। भोजन में विभिन्न तत्वों की मात्रा आयु वजन लंबाई और शारीरिक सक्रियता के अनुसार तय की जाती है। शुगर के रोगी के लिए आवश्यक है कि संतुलित आहार का सेवन किया जाए। संतुलित आहार वह होता है, जिसमें उचित मात्रा में सभी आवश्यक तत्व शारीरिक आवश्यकता के अनुसार उपलब्ध हों। जैसे कि कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज-लवण, रेशे एवं जल आदि।

  • मधुमेह रोगियों के खाने के लिए फल की सूची – डायबिटीज में कम मीठे फल जैसे मौसमी, संतरा, अमरुद, सेब, पपीता, नाशपाती, तरबूज, अनार, आलूबुखारा आदि खा सकते हैं।
  • हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक मेथी धनिया बंद गोभी बैंगन फूलगोभी और मौसमी सब्जियों का अधिक मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिए।
  • इंसुलिन के पौधे का पत्ता उबालकर प्रयोग करना चाहिए।
  • कच्ची सब्जियों जैसे सलाद गाजर मूली खीरा ककड़ी प्याज टमाटर आदि का सेवन करना चाहिए।
  • पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ जैसे नींबू पानी नारियल पानी व सत्यवादी का सेवन करना चाहिए.
  • गेहूं के आटे में बेसन मिलाकर या गेहूं के साथ चने एवं सोयाबीन को पेशवा कर प्रयोग में लाएं.
  • रोजाना 10 से 12 गिलास तक पानी पिएं।
  • अधिक रेशे वाले खाने के पदार्थों का अधिक प्रयोग करें जैसे साबुत अनाज अंकुरित दालें भुने चने सलाद आदि।

LDCF diet क्या है

LDCF diet का अर्थ है Low Density CarboHydrate and Low Fat Diet. इसमें पूरे दिन की diet में में 100 से 125 ग्राम कार्बोहाइड्रेट और 30 से 50 ग्राम FAT होता है. (नाश्ते में 40 ग्राम, लंच में 40 ग्राम, डिनर में 40 ग्राम) जबकि आमतौर पर एक आदमी दिन में 250 से 300 ग्राम कार्बोहाइड्रेट का सेवन करता है.

LDCF diet Chart in Hindi

LDCF diet डायबिटीज़ और मोटापे के रोगियों के लिए सबसे अच्छी diet है। इसे अपनाकर मोटापे को कंट्रोल किया जा सकता है। साथ ही डायबिटीज़ को भी ठीक किया जा सकता है। आइए देखते हैं LDCF diet Chart

LDCF diet में पूरे दिन में 100 से 125 ग्राम CarboHydrate खाने की सलाह दी जाती है। यदि आप 3 बार (नाश्ता, दोपहर को, रात को) खाना पसंद करते हैं तो आपको 40-40 ग्राम CarboHydrate 3 बार में लेना होगा। उसी के अनुरूप आपको अपने भोजन में वे चीजें इस्तेमाल करनी होंगी, जिससे आपका पेट भी भर जाए और आप सीमा से अधिक कार्बोहाइड्रैट का सेवन न करें। इसके लिए आईए जानते हैं कि सुबह नाश्ते, लंच और डिनर में क्या-क्या ले सकते हैं –

नाश्ता

  • नाश्ते में सबसे अच्छा विकल्प है फलों का। (थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कई प्रकार के फल लें।) फलों का जूस न लें, क्योंकि उसमें से फ़ाइबर और अन्य विटामिन आदि पोषक तत्व निकल जाते हैं।
  • आप रात को भिगोए गए चना, मूंग आदि। (भिगोने से इनमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम हो जाती है।)
  • रात को भिगोए गए ड्राइ फ्रूट्स। (थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कई ड्राइ फ्रूट्स लें।)
  • इसके अलावा आप चने की दाल के बने पदार्थ जैसे खम्मम, ढोकला, चीला या सत्तू सलाद के साथ
  • इसके अलावा भुना हुआ चना भी ले सकते हैं। अगर आप चाय पीते हैं.
  • अगर चाय लेनी हो तो चीनी, गुड, शहद, मिश्री न डालें। सिर्फ स्टीविया डालें।

दोपहर का खाना

  • दोपहर के खाने में पहले 300 से 400 ग्राम सलाद खाएं।
  • 100 ग्राम तक अंकुरित अनाज
  • 100 ग्राम दाल, टोफू या सोयाबड़ी के साथ 1 पतली रोटी।
  • कोई भी हरी सब्जी (आलू, शकरकंद, जिमीकंद, कटहल, अरबी और हरा केला को छोड़कर)

डायबिटीज के लिए LDCF diet के फायदे

  • मोटापा घटता है
  • ब्लड शुगर 7-10 दिन में कण्ट्रोल हो जाता है. लगातार लेने पर ब्लड शुगर बिलकुल ठीक होता है.
  • फैटी लीवर ठीक होता है तथा लीवर की कार्यप्रणाली ठीक हो जाती है.
  • रक्त वाहिनियों में जमा गंदगी ख़त्म होती है.
  • कोलेस्ट्रोल घटता है.
  • रात को गहरी नींद आती है.
  • पूरे दिन चुस्ती-फुर्ती बनी रहती है.

शुगर के रोगी को क्या नहीं खाना चाहिए? | डायबिटीज में क्या नहीं खाना चाहिए?

  • अत्यधिक मीठे फल जैसे आम, केला, चीकू, शरीफा, लीची, अंगूर, शहतूत, अनानास व खजूर आदमी शुगर के मरीज को नहीं खाने चाहिए।
  • शुगर के मरीज को जड़ वाली सब्जियां जैसे आलू, अरबी, शकरकंदी, शलजम, जिमीकंद, चुकंदर आदि नहीं खाने चाहिए।
  • शुगर के रोगी को अत्यधिक मीठे खाने की चीजें जैसे चीनी गुड, शहद, लड्डू, हलवा, केक, चॉकलेट, जैम आदि नहीं खाना चाहिए।
  • तेल में तले हुए भोजन जैसे पूरी, पकोड़ा, पराठा, समोसा, नमकीन, बिस्कुट आदि नहीं खाने चाहिए।
  • सूखे मेवे जैसे मूंगफली, खजूर, किशमिश, काजू, पिस्ता आदि नहीं खाने चाहिए।
  • कोल्ड ड्रिंक जैसे लिम्का, कोला, डिब्बाबंद जूस, गन्ने का रस, शराब आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • शुगर के रोगी को मलाई वाला दूध, क्रीम, मक्खन ,देसी घी, वनस्पति घी, अंडे का पीला वाला भाग या लाल माँस का प्रयोग नहीं करना चाहिए

HbAlc क्या है और आपको यह क्यों समझना चाहिए

HbAlc को ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन के नाम से भी जाना जाता है। यह खून की कोशिकाओं के हिमोग्लोबिन में शुगर का माप है। हिमोग्लोबिन में शुगर की मात्रा खून में शुगर के थोड़े समय के उतार-चढ़ाव से प्रभावित नहीं होती है। यह सिर्फ शुगर की जांच का तरीका ही नहीं, बल्कि मरीज के खून में शुगर की मात्रा का लंबे समय के लिए अंतर को दर्शाता है। खून में कोशिकाओं की समय अवधि 3 महीने की होती है। इसलिए HbAlc का माप पिछले तीन महीनों की खून में औसतन शुगर को दर्शाता है।

HbAlc की जांच कितने समय पर करानी चाहिए

खू न में शुगर की मात्रा स्थिर होने पर मरीज को कम से कम 6 महीने में HbAlc की जांच करा लेनी चाहिए।

नार्मल शुगर कितनी होनी चाहिए | खाली पेट शुगर कितनी होनी चाहिए

आदर्शसंतोषजनक असंतोषजनक
खाली पेट सुगर की मात्रा mg /dl80-110 111-125 >125
खाने के दो घंटे बाद शुगर की मात्रा mg /dl120-140 141-180 >180

शुगर के रोगी को कौन-कौन से व्यायाम करने चाहिए

डायबिटीज के रोगी को नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम खून के संचार व इंसुलिन में सुधार करता है। अपने डॉक्टर की सलाह लेकर अपनी आयु और अन्य बीमारियों के अनुसार व्यायाम करें। यदि डॉक्टर की सलाह के बिना अधिक व्यायाम किया जाए, तो हाइपोग्लाइसीमिया की स्थिति आ सकती है। यदि कोई और बीमारी नहीं है, तो निम्नलिखित व्यायाम किए जा सकते हैं-

  • तेजी से पैदल चलना सप्ताह में कम से कम 4 से 5 बार
  • मंडूकासन, पवनमुक्तासन व उत्तानपादासन हर रोज कम से कम 10 मिनट तक करें
  • जहां तक हो सके पैदल जाएं और घर के छोटे-मोटे काम स्वयं करें

शुगर के रोगियों के लिए पैरों की देखभाल

मधुमेह या डायबिटीज के रोगियों के लिए पैरों में घाव परेशानी का सबब बन जाता है। हर 6 में से एक शुगर का मरीज इससे प्रभावित होता है। शुगर के कारण एक तो पैरों में खून का बहाव कम हो जाता है, जिसके कारण ऑक्सीजन व अन्य तत्व पैरों तक नहीं पहुंच पाते। इस प्रकार घाव या छाले ठीक होने में बहुत अधिक समय लगता है। मधुमेह के रोगियों की तंत्रिकाएं प्रभावित हो सकती हैं, जिसके कारण पैरों में सुन्नपन हो सकता है, और चोट लगने पर मरीज को पता नहीं चलता। डायबिटीज के रोगियों में घाव के कारण पांव कटने का खतरा आम लोगों के मुकाबले 25% अधिक होता है। पैरों में घाव के फल स्वरुप ना केवल पैर गल सकता है और काटना पड़ सकता है। बल्कि कई स्थितियों में इसकी वजह से मृत्यु भी हो जाती है। कुछ सावधानियां अपनाने से शुगर के रोगी के पैरों में घाव होने से बचा जा सकता है तथा पैर काटने की संभावना को 80% तक कम किया जा सकता है।

  • शुगर के रोगी को प्रतिदिन अपने पैर की जांच करके देखनी चाहिए देखना चाहिए कि कहीं सूजन त्वचा का फटना लाल निशान फफोला या दरारें तो नहीं हो गए हैं।
  • उंगलियों के बीच की जगह को विशेष ध्यान से देखना चाहिए।
  • हर रोज पैरों को गुनगुने पानी से धोने के बाद अच्छी तरह से खाना चाहिए खासतौर पर उंगलियों के बीच.
  • जहां तक हो सके नंगे पैर नहीं चलना चाहिए। नंगे पैर चलने से पैरों में चोट लगने की संभावना बढ़ जाती है।
  • हमेशा आरामदायक जूता और साफ व सुखी जुराब या चप्पल पहने।
  • जूते के अंदर की सतह नर्म और मुलायम होनी चाहिए। जूते पहनने से पहले जांच करें कि उसके अंदर कोई चुभने वाला कंकर या पत्थर न हो।
  • चप्पल या सैंडल ऐसी हो जो पीछे से बंद हो या फीता हो। ताकी चप्पल पैरों से न फिसलें।
  • पैरों को बहुत अधिक तापमान जैसे हीटर या गर्म पानी की बोतल से बचा कर रखें। क्योंकि पैरों में सुन्नपन के कारण गर्म तापमान बिना महसूस हुए पाँव को जला सकता है।
  • बीड़ी सिगरेट ना पिए तथा किसी भी रूप में तंबाकू का प्रयोग ना करें। क्योंकि तंबाकू का सेवन करने से मधुमेह के रोगी का अंग काटने की संभावना बढ़ जाती है।

शुगर के रोगी के दांतों की देखभाल

मुंह के कई रोग मधुमेह से संबंधित है। आमतौर पर यह कहा जाता है कि मधुमेह या शुगर का पहला लक्षण मुंह से शुरू होता है। जैसे मसूड़ों की सूजन, मुंह का सूख जाना, दांतों में फासला बढ़ जाना, फंगल व बैक्टीरियल संक्रमण इत्यादि। इन लक्षणों के होने के बाद प्रारंभिक जांच व प्रबंधन से मधुमेह पर नियंत्रण किया जा सकता है। मसूड़ों संबंधित पेरियोडेंटल रोग आज विश्व में छठी सबसे ज्यादा होने वाली परेशानियों में से एक है।

मधुमेह रोग में मुंह के रोग का लक्षण

  • मधुमेह के रोगी के दांत खोखले होने लगते हैं। खून में शुगर की मात्रा का ज्यादा होने का अर्थ है, मुंह में शुगर व स्टार्च का बढ़ना। इस वजह से कीटाणु दांतों के साथ प्रतिक्रिया कर दातों के ऊपरी भाग पर परत या प्लॉक बना देते हैं। प्लॉक के हमलों के कारण दांत की संरचना खराब हो जाती है, जिससे दांत खोखले हो जाते हैं।
  • शुगर के रोगी को जिंजिवाइटिस हो जाता है। मधुमेह की वजह से बैक्टीरिया से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है जिसकी वजह से प्लॉक बन जाता है। दांत सही से साफ ना करने के कारण सख्त कण दातों में जमा हो जाते हैं, और मसूड़ों की सूजन वह खून का बहना शुरू हो जाता है इस दशा को जिंजिवाइटिस या मसूड़ों की सूजन कहते हैं।
  • पेरिओडांटाइटिस (मसूड़ों की शुरुआती बीमारी) – यदि जिंजिवाइटिस यानी मसूड़ों की सूजन का इलाज न किया जाए तो मसूड़ों की दशा काफी बिगड़ सकती है। हड्डी के नीचे बैक्टीरियल संक्रमण हो सकता है, जिसके कारण दांत पीले पड़ सकते हैं और गिर सकते हैं। यह स्थिति शुगर के मरीजों में अधिकतर देखी जाती है, क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) कम होती है और जख्म भरने में बहुत अधिक समय लगता है।

डायबिटीज के मरीजों में दंत क्षरण के अन्य लक्षण

  • मुंह का सूखना व लार का कम बनना
  • फंगल व बैक्टीरियल संक्रमण की संभावना का होना
  • मुंह का स्वाद खराब होना
  • सांस में बदबू व मुंह में जलन महसूस होना
  • मुंह के जख्म का देर से भरना

शुगर के मरीजों के लिए दांतों संबंधी सावधानियां

  • खून में शुगर की मात्रा नियंत्रण में रखने से मसूड़े व हड्डी के संक्रमण जिंजिवाइटिस और पीरियडोनटाइटिस और अन्य मुंह की बीमारियों को कम किया जा सकता है।
  • प्रतिदिन दांतो को नरम ब्रश से दिन में दो बार साफ करना चाहिए खासतौर पर भोजन व अन्य चीजें खाने के बाद।
  • अपने मसूड़ों को स्वस्थ रखने के लिए हर 6 महीने में एक बार स्केलिंग जरूर करा लें।
  • तरल पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करें ताकि मुंह में नवी बनी रहे।
  • दांतो के डॉक्टर की सलाह से एंटीसेप्टिक माउथवॉश का इस्तेमाल करना चाहिए।

डायबिटीज किस उम्र में होता है

टाइप 1 डायबिटीज कम उम्र के बच्चों को भी हो जाता है। लेकिन टाइप 2 डायबिटीज अक्सर 40 साल की उम्र के बाद होता है.

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