आज हम देख रहे हैं कि कोरोना और दूसरे वायरस का खतरा मानव प्रजाति के सामने शायद और बढ़ गया है. सभी लोगों के मन में ये प्रश्न आने लगे हैं कि क्या आने वाले दशकों में हम इन बीमारियों से निजात पा जाएंगे या खुद को इनके आगे और लाचार महसूस करेंगे? भविष्य में मनुष्य किस रूप में विकसित होगा?
आगामी दशकों में तकनीक द्वारा हमारे जीवन जीने के तरीके और शरीर में बहुत तरह का बदलाव लाया जायेगा. ये भी हो सकता है कि मौजूदा कुछ बीमारियों को हम इस तरह सहन करने लगें कि ये रोग ही नहीं रहेंगे।
भविष्य का इंसान कैसा होगा
आज रोज नयी तकनीक खोजी जा रही है. नैनो बॉयो तकनीक का जमाना आ चुका है. उसमें मानव शरीर के वो सारे अंग लैब में बनने लगेंगे जो फिलहाल संभव नहीं दिखते. बॉयोनिक आंख बन सकती है. रोबोटिक मानव अंग लग सकते हैं.
लैब में आर्टिफिशियल अंगों को पैदा करने का काम शुरू हो जाएगा. हमारी जीवनशैली की बीमारियों का हमारे जीवन से इस तरह एडाप्टेशन हो जाएगा कि वो बीमारियां रहेंगी ही नहीं।
लेकिन नए मशीनी युग में मानव और आराम तलब होगा. कम काम करेगा तो ज्यादा कमजोर भी हो जाएगा. उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घटेगी तो नई बीमारियां उसे ज्यादा घेरेंगी. कुछ दशकों के बाद भविष्य में मानव के अंग लैब में विकसित होंगे।
बायोनिक आंख

लगभग 10 वर्षों से बॉयोनिक आंख पर काम चल रहा है. वैज्ञानिकों को इस तकनीक के विकास में महत्वपूर्ण सफलता मिली है. यदि बायोनिक आँख बनाने में वैज्ञानिकों को सफलता मिल जाती है तो वर्ष 2900 तक शायद ही कोई अंधा रहे।
बायोनिक आँख में एक इलैक्ट्रानिक डिवाइस द्वारा आंख के लैंस को कृत्रिम रेटिना से जोड़ा जाता है. आंख के लैंस के साथ कैमरा लगा होता है, जो संकेतों की प्रक्रिया के तहत रेटिना के साथ संपर्क साधता है।
इसे चूंकि नर्व सिस्टम से जोड़ दिया जाता है, लिहाजा जन्म से अंधा व्यक्ति भी देखने में सक्षम हो पायेगा.
लैब में हड्डी उगाई जा सकेगी
1970 के दशक के बाद से, शोधकर्ताओं ने प्रोटीन युक्त अस्थि ऊतक की मदद से हड्डी के क्षतिग्रस्त हिस्सों को पेंच की मदद से मनवांछित तरीके से जोडऩे की तकनीक विकसित की.
लेकिन इस तकनीक से अभी भी पता नहीं चलता कि हड्डी किस तरह बढ़ रही है, जहां उसे नहीं बढऩा चाहिए था, वहां भी इसका बढाव हो जाता है.
2005 में शोधकर्ताओं ने विशेष प्रकार की हडडी के विकास के लिए विशेष रूप से डिजाइन कोशिकाओं और सक्षम प्रोटीन का उपयोग किया। यूसीबी-1 नामक प्रोटीन अब नई हड्डी के बढ़ाव को अपने तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं.
पोर्टेबल पेंक्रियाज
ये किसी व्यक्ति के ब्लड शूगर और इंसुलिन को शरीर की जरूरतों के हिसाब से एडजस्ट करने में सक्षम होगा. संभावना है कि ये अगले दशक में बाजार में आ सकता है. इसे बेहतर करने के लिए लगातार शोध चल रहे हैं.
इस डिवाइस में दो खास तकनीक प्रणालियां होंगी, जो इंसुलिन पंप और ग्लुकोज की लगातार निगरानी करता है।
इलैक्ट्रानिक जीभ
टैक्सास विश्वविद्यालय उन लोगों के लिए इस तरह की जीभ विकसित कर रहा है, जो विभिन्न तरह के स्वादों को भूल जाते हैं. खासतौर पर इस तरह की डिवाइस का उपयोग उन कंपनियों में हो सकता है जो विभिन्न तरह के खाद्य पदार्थ बनाती हैं.
इसका इस्तेमाल चाय के बागानों, बड़े होटलों में भी हो सकेगा. इसकी मदद से ये पता चल सकेगा कि जो खाद्य पदार्थ है उसका स्वाद कैसा होगा और इसमें कौन से तत्व, विटामिन, वसा और प्रोटीन की मात्रा कितनी है.
नये कृत्रिम अंग
नैनो और बायोटैक्नालाजी के विकास के साथ कोशिकीय और कृत्रिम अंग विकसित किये जा सकेंगे, जो न केवल शरीर के किसी भी हिस्से में फिट किये जा सकेंगे, बल्कि हमारी शरीर के संवेदी प्रणाली के साथ असरदार ढंग से जुडक़र काम करेंगे।
ये सारे हिस्से मस्तिष्क तक अपने संकेत पहुंचाएंगे और उसके आदेशों का पालन करेंगे।
भविष्य के मनुष्य में होंगे कम बाल
अगर डार्विन थ्योरी पर विश्वास करें, तो मनुष्य के शरीर के बहुत से हिस्से ऐसे हैं जहां बेवजह बाल उग आते हैं. वैसे भी सभी स्तन धारियों की तरह मनुष्य में भी बाल हैं लेकिन सबसे कम.
हमारे शरीर के बाल धीरे धीरे कम होते जा रहे हैं. आने वाले समय में सिर और दाढ़ी को छोडक़र शरीर के अन्य हिस्सों के बाल कम हो सकते हैं.
कपड़ों, एयर कंडीशनिंग और हीटिंग की आधुनिक तकनीकों ने शरीर के बालों की इंसुलेट करने वाली प्रवृत्ति को अप्रचलित बना दिया है.
मधुमेह व हृदय रोग के लिए प्रतिरोधी
हृदय रोग और मधुमेह फिलहाल दुनिया में मृत्यु के प्रमुख कारणों में एक हैं. ये आधुनिक भोजन से ज्यादा हो रहा है, लेकिन ये भी देखने में आया है कि वसा और कैलोरी वाले आधुनिक भोजन को खाने की मनुष्य आदत होती जा रही है.
चूंकि ये आहार मानव के अनुकुल भी होते जा रहे हैं. इसलिए लगाता है कि हमारा शरीर इनके साथ ढल जायेगा और आने वाले दशकों में हम खुद ब खुद इन बीमारियों के लिए अधिक प्रतिरोधी हो जाएंगे.
कमजोर व रोगों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होगा इंसान
चूंकि हम ज्यादातर काम मशीनों से करेंगे और ग्लोबल वार्मिंग व प्रकृति से दूर होते जाएंगे, लिहाजा अधिकाधिक नई बीमारियों के लपेटे में भी आएंगे. मशीनें हमें आराम तलब कर देंगी.
इससे हमारी मांसपेशियों में मजबूती खत्म होती जायेगी और हम कमजोर होते जाएंगे. बेशक चिकित्सा प्रोद्यौगिकी और एंटी बायोटिक के विकास से शरीर की प्रति रक्षा प्रणाली पर नकारात्मक असर ज्यादा हो सकता है।
भविष्य में मनुष्य किस रूप में विकसित होगा
इसलिए आज मानव भोजन , जलवायु,वातावरण, आचार-विचार के प्रति संवेदनशील होता जा रहा है। जब मानव शरीर इन सब का अनुकूलन नहीं कर पाता है तब वह बीमार पड़ जाता है।
ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न गर्मी से तापमान सहन करने की क्षमता बढ़ चुकी है बीसवी सदी के अस्सी के दशक में सौ और एक सौ एक का बुखार खतरनाक होता था लेकिन इक्कसवी सदी में एक सौ तीन व चार तक का बुखार सामान्य माना जाता है।
आने वाले समय में एक सौ दस पन्द्रह तक का बुखार भी सामान्य माना जाएगा।जबतक धरती पर मानव रहेगा तब तक पर्यावरण के अनुसार मानव अनुकूलन करता रहेगा।