अस्थमा का कारण, लक्षण और अस्थमा का इलाज

अस्थमा को दमा या ‘श्वास रोग’ भी कहते हैं. इस रोग में सांस लेते तथा छोड़ते समय छाती में दर्द होता है, क्योंकि उस समय श्वास नलिकाओं में कफ की रूकावट पैदा हो जाती है. इस रोग की गिनती राजरोगों में होती है.

यह एक असाध्य बीमारी है. कहा जाता है कि अस्थमा मृत्यु के बाद ही जाता है. भारत में लाखों लोग अस्थमा की बीमारी से पीड़ित हैं. इस लेख में हम अस्थमा कैसे फैलता है, अस्थमा के लक्षण और अस्थमा का इलाज के बारे में पढेंगे.

अस्थमा(दमा) कैसे होता है | अस्थमा कैसे फैलता है

शुद्ध हवा हमारे जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण खुराक है. सूर्य की किरणों और आजकल शहरों में अधिकांश लोगों को शुद्ध और प्राकृतिक प्राणवायु नहीं मिलती. वे सिर्फ एक दूसरे की छोड़ी हुई अशुद्ध हवा पर ही निर्भर हैं.

नगरों की हवा में धूल तथा फैक्ट्रियों से निकले जहरीले धुएं की अधिकता होती है. शहरों की हवा में धुल, धुएं, कचरे एवं अन्य सूक्ष्म रासायनिक कणों के कारण जब फेफड़ों में गंदगी अधिक बढ़ जाती है तो फेफड़े उसे खांसी और जुकाम के द्वारा ‘स्लेष्मा’ के रूप में बाहर फेंकने लगते हैं.

यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया होती है. लेकिन लोग इस प्रक्रिया को खांसी और जुकाम का रोग कहने लगते हैं, और इन्हें रोकने के लिए अंग्रेजी दवाइयों का प्रयोग करने लगते हैं. इन दवाइयों से खांसी और जुकाम तो रुक जाता है, साथ ही फेफड़ों की गंदगी को बाहर फेंकने की प्राकृतिक प्रक्रिया भी रुक जाती है.

धीरे – धीरे हानिकारक गंदगी हमारे फेफड़ों में ही जमा होने लगती है, और फेफड़े कमजोर होने लगते हैं. यही स्थिति आगे बढ़कर अस्थमा, टीबी आदि बीमारियों का रूप धारण कर लेती है.

अस्थमा(दमा) के लक्षण

अस्थमा की बीमारी में सांस लेते और छोड़ते समय छाती में दर्द होता है. फेफड़े अन्दर की गंदगी को बाहर निकालने की चेष्टा करते रहते है. इसलिए सांस तेज तेज चलती रहती है.

लम्बे समय तक बीमारी के बने रहने से ज्ञान तंतु कमजोर हो जाते हैं. तथा तेज सांस कभी कभी अस्थमा के दौरे में बदल जाती है. धूल, अनाज का भूसा, धुआं या कभी कभी उत्तेजना के कारण भी अस्थमा के दौरे पड़ने लगते हैं.

अस्थमा का इलाज

अस्थमा का रोग असाध्य रोग माना जाता है. जब यह अपने प्रथम चरण यानी खांसी और जुकाम की स्थिति में होता है, खांसी और जुकाम की दवा लेकर उन्हें दबा दिया जाता है. उसके बाद भी जब अस्थमा के दौरे पड़ने की स्थिति आ जाती है, तब भी तत्काल आराम देने वाली दवाइयों को अपनाया जाता है.

इस रोग का कारण जानकार अस्थमा को जड़ से ख़त्म करने का इलाज नहीं अपनाया जाता. नतीजा यह होता है कि अस्थमा मृत्यु पर्यन्त बना रहता है.

अस्थमा का कारण, लक्षण और अस्थमा का इलाज

इसीलिए अस्थमा के प्रारंभिक चरण यानी खांसी, जुकाम आदि को नज़रंदाज़ न करें. उनको दबाने वाली कोई दवाई न खाएं.

खांसी, जुकाम और शरीर से कफ का निकलना शरीर को प्राकृतिक रूप से सफाई करने का काम है. इस काम काम में बाधा न बने. बल्कि प्राकृतिक रूप से इस काम में शरीर का सहयोग करें, जिससे गंदगी फेफड़ों में जमा न होने पाए.

इसके लिए नाक में गाय का घी, बादाम का तेल या ज्योतिष्मती तेल की कुछ बूंदे नियमित रूप से डालनी चाहियें. जलनेति और रबरनेति से नाक को साफ करना चाहिए. इसके अलावा बस्ती के प्रयोग से भी शरीर को साफ़ करना चाहिए. हफ्ते में कम से कम 1 दिन उपवास रखना चाहिए.

अस्थमा अधिक बढ़ने पर बस्ती क्रिया, छाती पर गरम ठंडा सेंक, तिल के तेल की मालिश और उपवास सबसे अच्छा इलाज है.

उपवास में अन्न बिलकुल नहीं खाना चाहिए. सिर्फ पानी पर उपवास करना चाहिए. यदि उपवास से कमजोरी महसूस हो तो फल या फलों का रस दिया जा सकता है. अन्यथा सब्जियों का सूप या हलकी खिचड़ी ही खाने को देनी चाहिए.

5 महीने यदि नियमित रूप से बस्ती क्रिया, छाती पर गरम ठंडा सेंक, तिल के तेल की मालिश और उपवास कर लिया जाय तो अस्थमा का रोग जड़ से ख़त्म हो जाता है.

विशेषज्ञों के अनुसार रोगी को उन परिस्थितियों और वस्तुओं से दूर रहना चाहिए, जिससे रोगी को समस्या बढ़ जाती है.

प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा दमा का उपचार

अनुभवी प्राकृतिक चिकित्सकों के अनुसार दमा को असाध्य बीमारी मान लेना गलत है. प्राकृतिक उपचार द्वारा यह असाध्य बीमारी भी ठीक हो जाती है.

अस्थमा को ठीक करने के लिए जिन प्राकृतिक उपचारों को अपनाना चाहिए, उनमें एनिमा यानी बस्ती, गुनगुने पानी से स्नान, ठंडा घर्षण स्नान, गरम पाद स्नान, गरम पानी में हाथ एवं पैर को डुबाने की क्रिया, नाक-गले एवं छाती का वाष्प स्नान, ठंडी चादर लपेट, छाती का गरम ठंडा सेंक, सौम्य गरम कटि स्नान, सूर्य मालिश, एवं उपवास आदि प्रमुख हैं.

अब हम इन उपचारों को विस्तार से देखते हैं –

एनिमा यानी बस्ती

अस्थमा के रोगी का पेट साफ़ रखना नितांत आवश्यक है. अस्थमा के दौरे के समय रोगी को एनीमा देने से दौरे का असर तुरंत कम हो जाता है. जैसे कि ऊपर बताया है कि अस्थमा के कारणों में सबसे बड़ा कारण है शरीर में गंदगी का जमा होना. इसलिए अस्थमा को जड़ से ख़त्म करने के लिए नियमित अन्तराल पर एनिमा यानी बस्ती क्रिया अत्यंत आवश्यक है.

गुनगुने पानी से स्नान

इसके लिए बड़े टब की आवश्यकता होती है. टब इतना बड़ा होना चाहिए, जिसमें रोगी आसानी से लेट सके. टब में 60-70 डिग्री तक गुनगुना पानी भरना चाहिए. इसके बाद अस्थमा के रोगी को टब में हाथ पाँव ढीले छोड़कर लेट जाना चाहिए. शरीर पूरा पानी में रहे. सिर्फ सिर बाहर रहे. स्नान के समय सिर पर ठन्डे पानी की पट्टी बदल-बदल कर रखते रहें.

अस्थमा के रोगी को जो हर समय थकान और शरीर में जकड़न की समस्या रहती है, इस प्रकार के स्नान से थकी मांस पेशियों की थकान और तनाव दूर होता है. शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है. जैसे ही सिर में पसीना आने लगे, रोगी को तुरंत पानी से बाहर निकालकर तुरंत कपड़ा ओढा दें.

ठंडा घर्षण स्नान

सादे स्नान के समय ठन्डे पानी से भीगे खुरदुरे तौलिये को निचोड़कर सारे बदन पर अच्छी तरह रगड़ना चाहिए. पैरों से शुरू कर हाथों, कमर, पेट, छाती, पीठ, चेहरा और अंत में सिर को भी रगड़कर पोंछना चाहिए. इससे त्वचा के रक्त संचार में वृद्धि होती है. इससे शरीर में दूषित अंश मल शरीर से बाहर निकल जाते हैं. इससे अस्थमा के रोग को जड़ से ख़त्म करने में सहायता मिलती है.

गरम पाद स्नान

अस्थमा के उपचार में यह उपचार बहुत लाभ देता है. अस्थमा के दौरे के समय भी यह उपचार काम करता है. इस उपचार में सहन करने लायक गरम पानी में पिंडलियों तक रोगी के पैर डुबोकर कुर्सी पर बिठा दीजिये. ध्यान रहे कि इसमें रोगी को हवा न लगे. इसलिए इस उपचार को या तो बंद कमरे में करें, या फिर रोगी को कोई मोटा कपड़ा ओढा दें. इस स्नान से दोनों फेफड़ों, सिर आदि शरीर के ऊपरी भाग के रक्त की रूकावट दूर होती है.

गरम पानी में हाथ और पैर को डुबाना

रोगी को अस्थमा का दौरा आने पर यह उपचार करना चाहिए. रोगी को खाट पर बैठा कर पैरों तथा हाथों को गरम पानी में डुबो देना चाहिए. थोड़ा पसीना आने पर पानी से हाथों और पैरों को निकाल लें. इससे रक्त संचार बढ़ने से रोगी दौरे की अवस्था से जल्दी बाहर निकल आता है.

नाक-कान और गले का वाष्प स्नान

नाक, गले और छाती में वाष्प देने से श्वास नलिकाएं फ़ैल जाती है, जिससे उनमें रुका हुआ कफ बाहर निकल जाता है. यही कफ अस्थमा का कारण बनता है. भाप लेने के लिए किसी चौड़े मुंह के भगोने में पानी उबालें. उसमें नीलगिरी तेल मिला लेंगे तो और फायदा होगा.

एक मोटा कम्बल ओढ़कर इस प्रकार बैठ जाएँ कि भगोने की वाष्प नाक, गले एवं छाती पर लगती रहे. ध्यान रहे कि उस समय शरीर का कोई भी अंग हवा के संपर्क में नहीं आना चाहिए. केतली की नली पर रबर लगा कर भी भाप ली जा सकती है.

ठंडी चादर लपेट

दो कम्बल बिछाएं. उन पर ठन्डे पानी में भिगोकर निचोड़ी हुई एक चादर बिछाएं. अब रोगी के कपड़े उतार कर छाती के चारों और तौलिया लपेट कर चादर पर लिटा दें. फिर उस चादर को रोगी के दोनों हाथ, पैर, पेट, छाती, कान. दोनों आँख, चेहरे के चरों और लपेट देना चाहिए.

सिर्फ साँस लेने के लिए नाक ही खुली रहे. अब चादर में नीचे वाले कम्बल को भी उस चादर के ऊपर रोगी के शरीर पर लपेट देना चाहिए. यदि रोगी में कमजोरी अधिक है, तो चादर को गर्म पानी में डुबाकर रोगी पर लपेटना चाहिए.

ठंडी छाती लपेट

जब अस्थमा के रोगी को नाक, गले तथा छाती पर भाप दी जाये, तो उसके बाद कम से कम 1 घंटे तक ठन्डे पानी में भिगोकर निचोड़े तौलिये से छाती को एक घंटे तक लपेट कर रखा जाये. यदि रोगी अधिक कमजोर है, तो पानी को गुनगुना रखा जा सकता है.

छाती का गर्म ठंडा सेंक

छाती के गर्म ठंडा सेंक के बाद छाती को ठंडी पट्टी से लपेट देना चाहिए. अस्थमा में इस क्रिया से जितना लाभ होता है, उतना किसी उपचार से संभव नहीं. अस्थमा के दौरे के समय भी यह उपचार कार्य करता है.

कटि स्नान

कटि स्नान में रोगी को नाभि तक पानी भरे टब में बैठाया जाता है. अस्थमा का रोगी ठंडा पानी सहन नहीं कर पाता, इसलिए उसे हल्का गरम या गुनगुने पानी में बैठाया जाता है. इससे रोगी की पाचन शक्ति में सुधार होता है. वायु-प्रकोप, पेट दर्द आदि के समय तुरंत लाभ होता है. पेट के दूषित पदार्थों का निष्कासन आसानी से होता है.

सूर्य स्नान

अस्थमा के रोगी को सूर्य स्नान से भी काफी लाभ मिलता है. सूर्य स्नान से विटामिन D मिलता है. नियमित सूर्य स्नान से रोगी का जमा हुआ कफ बाहर निकालने लगता है. सूर्य स्नान को गर्मियों में केवल सूर्योदय और सूर्यास्त के समय लेना है.

अस्थमा में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए

दूध तथा दूध से बनी कोई भी वस्तु जैसे मट्ठा, दही आदि रोगी को नहीं देनी चाहिए. मक्खन, घी, तेल, तैलीय सूखे मेवे जैसे बादाम, मूंगफली, काजू, अखरोट भी रोगी को नहीं देने चाहियें. रोगी को सूखे फल जैसे किशमिश, अंजीर, खजूर, छुहारा आदि देना चाहिए.
प्रारंभ में रोगी को खट्टे पदार्थों से भी बचाना चाहिए. शाम को सूर्यास्त के बाद रोगी को कुछ भी खाने को नहीं देना चाहिए. गेहूं की रोटी के बजाय ज्वार-बाजरा की रोटी या दाल वाली खिचड़ी रोगी को देनी चाहिए. तेज मसालों और मिर्च आदि का पूर्ण त्याग कर देना चाहिए.

अस्थमा कितने प्रकार के होते हैं

अस्थमा 2 प्रकार का होता है. 1. फेफड़ों का अस्थमा 2. हृदय का अस्थमा.

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