यज्ञ चिकित्सा से 1000 गुना बढ़ जाता है दवाइयों का प्रभाव | Yagyopathy in Hindi | यज्ञ चिकित्सा क्या है

यज्ञ चिकित्सा (Yagya Chikitsa – Yagyopathy in Hindi)

मानव शरीर में रोगों के दो कारण हैं.

  1. बाह्य कारण – प्लास्टिक और केमिकल द्वारा वायु, ज़मीन और पानी का प्रदूषण, रेडिएशन और जीवाणु आदि. शरीर लगातार इन प्रदूषणों और जीवाणुओं से लड़ता रहता है जिससे शरीर और प्राण कमजोर पड़ जाते हैं और शरीर में बीमारियाँ अपना घर बना लेती हैं.
  2. आंतरिक कारण – मस्तिष्क शरीर का महत्वपूर्ण अंग है. शरीर की सारी गतिविधिओं को मस्तिष्क ही संभालता है. ऐसे में जब मस्तिष्क बुरे विचारों और नकारात्मक विचारों या तनाव में घिर जाता है, तब शरीर की संचालक प्रणालियाँ शिथिल हो जाती हैं, जिससे प्राण कमजोर हो जाते हैं और शरीर में धीरे-धीरे बीमारियाँ प्रविष्ट हो जाती हैं

उक्त दो कारणों से मानसिक दुर्बलता, अनिद्रा, मिर्गी, अवसाद, प्रतिरोधक क्षमता में कमी, PCOD यानि बाँझपन, मधुमेह. तंत्रिका तंत्र (Nervous System) के रोग, थायरोइड, हाई ब्लड प्रेशर, टीबी, कैंसर, वायु रोग, नेत्र रोग, चर्म रोग, किडनी के रोग, पार्किन्संस, लीवर के रोग, पथरी, अस्थमा, पक्षाघात, बैक्टीरिया जनित बीमारी जैसे डेंगू, मलेरिया, कोरोना आदि रोग होना आजकल आम बात हो गयी है.

यज्ञ चिकित्सा क्या है | Yagyopathy in hindi

यज्ञ चिकित्सा वैदिक कालीन चिकित्सा पद्धति है, जिसमे रोगों के अनुसार विशेष जड़ी बूटी को गाय के घी में मिलाकर वेद मन्त्रों के साथ अग्नि में डाला जाता है (आहुति दी जाती है). इस प्रकार जो धुआं उत्पन्न होता है, उसमे कई हज़ार गुना क्षमता वाले चिकित्सीय गुण होते हैं. वह धुआं फेफड़ों और रोम कूपों के द्वारा  रक्त में मिल जाता है, जिससे अभीष्ट रोग का निवारण होता है. यज्ञ के धूम्र से उत्पन्न औषधीय घटक टेबलेट या काढ़े की अपेक्षा अधिक तेजी से रोग निवारण करते हैं. इस प्रकार के यज्ञ को भैषज यज्ञ या आधुनिक भाषा में यज्ञोपैथी या यज्ञ चिकित्सा कहते हैं. यज्ञ को देवयज्ञ, अग्निहोत्र, हवन या होम भी कहते हैं.

यज्ञ चिकित्सा कैसे काम करती है

भैषज यज्ञ,  यज्ञोपैथी या यज्ञ चिकित्सा निम्न प्रकार से रोगों का निवारण करते हैं

  1. जब औषधि को अग्नि में डाला जाता है, तो वह सूक्ष्मीकृत और वायुभूत हो जाती है और नाक द्वारा शरीर में प्रवेश करती है. औषधि के सूक्ष्म कण फेफड़ों के माध्यम से रक्त में तुरंत मिश्रित हो जाते हैं, जिससे रोगों का जल्दी निवारण होता है. जबकि टेबलेट या काढ़े का पहले अमाशय और फिर यकृत द्वारा पाचन किया जाता है, उसके बाद दवाई के घटक रक्त में पहुँचते हैं. इस प्रक्रिया में समय लगता है.
  2. इसका दूसरा कारण यह है कि काढ़े में औषधि के सभी गुण नहीं आ पाते. केवल वही गुण आते हैं, जो पानी में घुल पाते हैं. जबकि किसी औषधि को जब अग्नि में भस्म किया जाता है, तब उसके सभी तत्व धुंए के माध्यम से शरीर में पहुँच जाते हैं.
  3. किसी रोग की गंभीर अवस्था में व्यक्ति की पाचन क्षमता कम हो जाती है. उस समय वह किसी टेबलेट या काढ़े को पचाने लायक नहीं रहता. ऐसे में धूम्र द्वारा औषधि को रोगी के रक्त तक पहुँचाने में सहायता मिलती है. इससे पौष्टिक खाद्य पदार्थ के घटकों को भी सीधे रक्त तक पहुँचाने में सहायता मिलती है. इससे रोग का निवारण भी होता है और अशक्त रोगी को शक्ति भी मिलती है.
  4. कुछ रोग जैसे आधासीसी, मानसिक दुर्बलता, माइग्रेन, अनिद्रा जैसे रोगों के निवारण के लिए टेबलेट और काढ़े से जो दवाइयां रक्त तक पहुँचती हैं, उनका पूरा लाभ ब्लड ब्रेन बैरियर के कारण उक्त रोगों को नहीं मिल पता. इसलिए सालों साल दवाइयां खानी पड़ती हैं. जबकि ये दवाइयां अग्नि और मन्त्रों के संपर्क में आकर अति सूक्ष्म और हलकी और अधिक शक्तिशाली हो जाती हैं और मस्तिष्क तक आसानी से पहुँच जाती हैं. इससे उक्त रोगों का निवारण भी जल्दी हो जाता है.
  5. यज्ञ चिकित्सा में घी एक अनिवार्य तत्व है. चूंकि घी एक लिपिड तत्व है, तो औषधियों को घी के साथ अग्नि में भस्म करने से औषधियों के घटक चिकनाई युक्त हो जाते हैं और रक्त और शरीर के सभी अंगों में आसानी से प्रविष्ट हो जाते हैं.
  6. इसके अलावा जब यज्ञ कराने वाले साधक के व्यक्तित्व और मंत्र शक्ति के साथ मिलकर धूम्र शरीर में प्रविष्ट करता है तो उसकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है. इस लेख में मंत्र शक्ति का उल्लेख करने से लेख लम्बा हो जायेगा. अतः अगले लेख में मन्त्रों के साथ यज्ञ चिकित्सा पर प्रकाश डाला जायेगा.

यज्ञ चिकित्सा के क्या फायदे हैं –

यज्ञ से उत्पन्न धुंए में कई प्रकार के औषधीय घटक जैसे फ़ायटो तत्व, वोलेटाइल आयल, न्यूट्रिएंट्स, एंटीओक्सिडेंट होते हैं. ये सभी घटक –

  1. शरीर में रोग पैदा करने वाले कीटाणुओं और जीवाणुओं का नाश करते हैं,
  2. रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाते हैं,
  3. सर्दी से होने वाले रोगों से बचाव होता है.
  4. चयापचयन यानि मेटाबोलिज्म को ठीक करते हैं
  5. शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा देते हैं.

यज्ञ से शरीर detox होता है

यज्ञ के दौरान अग्नि के सामने बैठने वाले रोगी का रक्त प्रवाह तेज होता है, जिससे पसीना आकर शरीर से विषाणु निकल जाते हैं. इससे शरीर detox हो जाता है.

यज्ञ से हार्मोनल डिसबैलेंस ठीक होता है

मनुष्य की जैविक घड़ी मनुष्य के शरीर में हार्मोन्स, नींद और अन्य जैविक प्रक्रियाओं को नियोजित करती है और यह जैविक घड़ी सूर्योदय और सूर्यास्त के साथ तादात्म्य करती है.  इसीलिए यज्ञ चिकित्सा सूर्योदय और सूर्यास्त के समय की जाती है. सूर्योदय और सूर्यास्त के समय यज्ञ करने पर मस्तिष्क में मेलाटोनिन उत्सर्जन संतुलित होता है. इससे मनुष्य की जैविक घड़ी का सूर्य के साथ तादाम्य ठीक हो जाता है और हार्मोनल डिसबैलेंस, अनिद्रा, मानसिक रोगों आदि का निवारण होता है. औषधि, मंत्र और अग्नि तीनो मिलकर प्रभावी ढंग से रोगों का शमन करते हैं.

यज्ञ से तनाव, अवसाद और निराशा के भाव ख़त्म होते हैं

यज्ञ के दौरान किये जाने वाले विभिन्न संस्कार जैसे, गुरु वंदना, षट्कर्म,  देव आह्वान, अग्नि स्थापना और गायत्री का मंत्रोच्चार शनैः-शनैः तनाव कम करता है. रोजाना यज्ञ की 30 मिनट के कर्मकांड तनाव और गंभीर बीमारी से उत्पन्न अवसाद  को जड़ से ख़त्म कर देते हैं.

यज्ञ से थकान, कमजोरी, अनिद्रा का निवारण होता है

यज्ञ चिकित्सा में औषधि, मंत्र, अग्नि, संस्कार और सूर्य के मिलन से व्यक्ति के शरीर से थकान, कमजोरी और अनिद्रा आदि का निवारण होता है और इनसे होने वाले तमाम रोग जैसे रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना, पेट ख़राब होना, हाई बीपी, तनाव आदि लगातार यज्ञ करने से ठीक होते हैं.

यज्ञ से रक्त संचार में वृद्धि

यज्ञ में अग्नि का प्रयोग होता है. जब रोगी को अग्नि के सामने बिठाया जाता है, उसके शरीर में रक्त संचार बढ़ जाता है, जिससे रोग निवारण बहुत तीव्रता से होता है. साथ ही यज्ञ के समय मंत्रो के प्रयोग से रोगी की मानसिक स्थिति में सुधार होता है, जिसके कारण भी रोग निवारण निवारण बहुत तीव्रता से होता है.

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वातावरण पर यज्ञ का प्रभाव

यह तो सभी जानते हैं कि तरह-तरह के कीटाणुओं-जीवाणुओं, केमिकल्स, पेट्रोलियम पदार्थों के धुंए इत्यादि से वातावरण अत्यंत दूषित हो गया है. यज्ञ में आम की लकड़ी, गाय के गोबर के कंडे, गिलोय, पलाश, उदंबर, पीपल, तुलसी, नीम आदि कई प्रकार वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं, जिनमे एंटी-बैक्टीरियल और एंटी फंगल गुण होते हैं. ये वस्तुएं मंत्र ध्वनि के साथ मिश्रित होकर वातावरण में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं को ख़त्म कर देती हैं. इस बारे में कई अध्ययन भी हुए हैं, जिनमे यह पाया गया है कि मंत्रों के साथ ये वस्तुएं वातावरण की शुद्धि में अधिक प्रभावशाली तरीके से काम करती हैं.

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