बहुत से लोगों को खाना खाने के बाद पेट फूलने की बीमारी होती है. यह समस्या भोजन का पाचन ठीक से न होने के कारण होती है. इस article में हम हाजमे के लिए चूर्ण बनाने के 6 घरेलू नुस्खे बनाने की विधि pet ke liye churan banane ki vidhi बताएँगे. ये चूर्ण बाज़ार में भी मिल जाते हैं.
अग्निमुख चूर्ण
अग्निमुख चूर्ण के लिए आवश्यक सामग्री
- सफ़ेद जीरा भुना हुआ – 100 ग्राम
- सौंठ – 50 ग्राम
- सेंधा नमक – 150 ग्राम
- काला नमक – 50 ग्राम
- काली मिर्च – 50 ग्राम
- नींबू सत्व – 50 ग्राम
- पिपरमेंट – 10 ग्राम
अग्निमुख चूर्ण बनाने की विधि
पीपरमेंट और नींबू सत्व को छोड़कर सभी सामग्रियों को सुखाकर कूट लें. इसके बाद नींबू सत्व और पीपरमेंट को बारीक पीस कर मिला लें.
अग्निमुख चूर्ण कितनी मात्रा में लेना चाहिए
अग्निमुख चूर्ण को ताजे पानी के साथ आधा-आधा चम्मच सुबह शाम भोजन के बाद लें.
अग्निमुख चूर्ण के लाभ
अग्निमुख चूर्ण के नियमित उपयोग से खाना खाने के बाद खट्टी डकारें आना, उलटी आना, जी मिचलाना, पेट में दर्द होना, पेट फूलना, अपान वायु का बनना आदि रोग नष्ट होते हैं. इस चूर्ण के उपयोग से भूख न लगना और खाना हजम न होने की समस्या ख़तम हो जाती है. अग्निमुख चूर्ण खाने में स्वादिष्ट है, मन्दाग्नि को ठीक करता है और खाने को पचाने में मदद करता है.
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कृष्णादि चूर्ण
कृष्णादि चूर्ण के लिए आवश्यक सामग्री
- पीपल 50 ग्राम
- सौंठ 50 ग्राम
- बेलगिरी 50 ग्राम
- नागरमोथा 50 ग्राम
- अजवायन 50 ग्राम
कृष्णादि चूर्ण बनाने की विधि
उपरोक्त सभी सामान पंसारी के पास आसानी से मिल जायेंगे. बेलगिरी को गरम पानी से अच्छी तरह साफ़ करके सुखा लें. बाकी वस्तुओं को भी एक दिन धूप में सुखा लें. इसके पश्चात् सभी वस्तुओं को कूटकर कपड़छन करके साफ़ शीशी में भरकर रख लें.
कृष्णादि चूर्ण को कितनी मात्रा में लेना चाहिए
कृष्णादि चूर्ण को चौथाई चम्मच दिन में 3 बार शहद या घी से लेना चाहिए.
कृष्णादि चूर्ण के लाभ
कृष्णादि चूर्ण बच्चों का पेट फूलना, दस्त लगना, दूध न पचना, उलटी करना, बुखार, सर्दी या खांसी जैसी बीमारियों में फायदा करता है. छोटे-छोटे बच्चों को प्राय: दूध न पचने की शिकायत हो जाती है. या दांत निकलते समय बच्चों को दस्त हो जाते हैं. बच्चा दिनोंदिन दुबला-पतला और कमजोर होता चला जाता है. बच्चे के पेट में दर्द रहता है, जिससे वह चिडचिडा और जाता है और दिन भर रोता रहता है. ऐसे समय कृष्णादि रस उन बच्चों को देना चाहिए. यह आँतों को मजबूत कर दूध पचने में मदद करता है और दस्त बंद करता है.
तालिसादि चूर्ण
तालिसादि चूर्ण के लिए आवश्यक सामग्री
- तालीसपत्र – 10 ग्राम
- काली मिर्च – 20 ग्राम
- सौंठ – 30 ग्राम
- पीपल – 40 ग्राम
- वंशलोचन – 20 ग्राम
- छोटी इलायची और दालचीनी – 5-5 ग्राम
तालिसादि चूर्ण बनाने की विधि
तालीस पत्र, काली मिर्च, सौंठ, पीपल, वंशलोचन, छोटी इलायची और दालचीनी को एक दिन धूप में सुखा लें. इसके बाद सबको कूटकर महीन चूर्ण बना लें. इस चूर्ण में 350 ग्राम मिश्री मिलकर साफ़ और सूखी कांच की शीशी में भरकर रख लें.
तालिसादि चूर्ण को कितनी मात्रा में लेना चाहिए
तलिसादि चूर्ण को 2 से 2.5 ग्राम मात्रा में घी या शहद के साथ लेना चाहिए.
तालिसादि चूर्ण के लाभ
तालिसादि चूर्ण एक बढ़िया दीपन का काम करता है. यह कब्ज़ और हाजमा ख़राब होने के कारण होने वाली समस्याओं जैसे भूख कम लगना, खाने में अरुचि, आंत में सूजन, पाचन शक्ति में कमी, गैस आदि परेशानियों के लिए बेहद लाभप्रद है.
तालिसादि चूर्ण के सेवन से खांसी, पुराना बुखार आदि को भी ठीक करता है. इसके साथ पाचन क्रिया को बढ़ाता है, जठराग्नि को बढ़ाता है और दस्तों को रोकता है.
सूखी खांसी को रोकने के लिए तालिसादि चूर्ण बहुत उपयोगी है. यह कफ को पिघलाकर बहार निकल देता है. यह पित्त की गर्मी को शांत करता है, जिससे व्यक्ति शरीर में स्फूर्ति महसूस करता है.
नमक सुलेमानी चूर्ण
नमक सुलेमानी चूर्ण बनाने के लिए सामग्री
- सफ़ेद जीरा – 90 ग्राम
- सेंधा नमक – 10 से 15 ग्राम
- काला नमक/काली मिर्च/नींबू सत्व – प्रत्येक 45 ग्राम
- नौसादर – 25 ग्राम
- हींग और पीपरमेंट – दोनों 2-2 ग्राम
सुलेमानी चूर्ण बनाने की विधि
सफ़ेद जीरा और हींग को अलग अलग हल्का भून लें. इसके बाद जीरा, सेंधा नमक, काला नमक, काली मिर्च और नौसादर को ठीक प्रकार से कूटकर चूर्ण बना लें. हींग और पीपरमेंट को अलग से बारीक कूट लें और बाकी मिश्रण में मिला लें. सुलेमानी चूर्ण तैयार है. मात्रा जो लिखी है, वही लें. इसके बाद मिश्रण को साफ और सूखी कांच की शीशी में भरकर रख लें.
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नमक सुलेमानी चूर्ण को कितनी मात्रा में लेना चाहिए
नमक सुलेमानी चूर्ण को 2 से 2.5 ग्राम तक सुबह-शाम खाने के बाद ताजे पानी से लेना चाहिए.
सुलेमानी चूर्ण के फायदे
नमक सुलेमानी चूर्ण का उपयोग पेट में जलन, पेट में दर्द, पेट में अफारा होना, लीवर सही काम न करना, बार-बार गैस पास होना आदि रोगों में होता है. नमक सुलेमानी चूर्ण खाने में भी बहुत स्वादिष्ट होता है. इसको फलों की चाट, या खाने में स्वाद बढाने के लिए डालकर खाया जा सकता है.
पंचसम चूर्ण
पंचसम चूर्ण बनाने की विधि
पीपल, हरड, सौंठ, काला नमक और निशोथ 50-50 ग्राम लेकर बारीक कूट कर छान लें. इसके बाद साफ़ और सूखी शीशे की बोतल में रख लें.
पंचसम चूर्ण को कितनी मात्रा में लेना चाहिए
लगभग 2.5 पंचसम चूर्ण को खाने के बाद ताजे जल से लेना चाहिए.
पंचसम चूर्ण के लाभ
पंचसम चूर्ण के सेवन से पेट सम्बन्धी रोग जैसे गैस, अफारा, पेट फूलना, पाचन ठीक न होना, भूख न लग्न, कब्ज़ होना, पेट दर्द होना आदि ठीक हो हो जाते हैं.
मन्दाग्नि के कारण पेट में पाचन ठीक प्रकार से नहीं होता, जिससे पेट में मल सड़ने लगता है और आंव इकट्ठी हो जाती है. इससे पेट में दर्द बढ़ने लगता है. दस्त लग जाते हैं तथा दस्तों के साथ दर्द होता है. पंचसम चूर्ण पेट की आंव निकालकर मल को बांधता है. कुछ दिनों के सेवन से पाचन ठीक होने लगता है और पेट के रोग ठीक हो जाते हैं.
अमृत चूर्ण
अमृत चूर्ण बनाने की विधि
- काला नमक – 150 ग्राम
- शुद्ध नौसादर – 75 ग्राम
- धतूरे के बीज – 40 ग्राम
- काली मिर्च – 10 ग्राम
- सत पुदीना – 5 ग्राम
सभी वस्तुओं को बारीक पीसकर कपड़े से बारीक छान लें. इस चूर्ण को किसी साफ़ कांच के एयरटाइट बर्तन में भरकर रख लें.
अमृत चूर्ण के फायदे
- अमृत चूर्ण के सेवन से खाना जल्दी पचता है.
- यह नया खून बनाने में मदद करता है.
- इससे मन्दाग्नि तीव्र होती है.
- अमृत चूर्ण से अफारा, आंतों की कमजोरी, खट्टी डकारें, लीवर की कमजोरी, जुकाम, आँखों में जलन, मोटापा, बुखार आदि समस्याओं में बहुत अच्छे परिणाम देता है.
- दांत दर्द, सिर दर्द और विषैले कीड़े जैसे ततैया, मधुमक्खी के काटने में भी लाभप्रद है.
अमृत चूर्ण सेवन विधि –
- पेट ख़राब होने की स्थिति में खाना खाने के बाद अमृत चूर्ण को 2-5 ग्राम गुनगुने पानी के साथ सेवन करें.
- दांत में दर्द होने पर या किसी विषैले कीड़े के काटने पर अमृत चूर्ण को दर्द के स्थान पर मलना चाहिए.
- सिर दर्द होने पर इसको सूंघना चाहिए.
- बुखार होने पर अजवायन के अर्क के साथ अमृत चूर्ण को देना चाहिए.
बाज़ार में मिलने वाले चूर्ण
उपरोक्त चूर्ण घर पर आसानी से बनाये जा सकते हैं. इसलिए हमने इनकी विस्तृत विधि लिखी है. लेकिन कुछ लोग जो इन चूर्ण को बना नहीं सकते, वे बाज़ार से भी इनको ले सकते हैं. ये बाज़ार में निम्न links पर उपलब्ध हैं –
अग्निमुखी चूर्ण
कृष्णादि चूर्ण
तलिसादि चूर्ण
नमक सुलेमानी चूर्ण
पंचसम चूर्ण
दीपन किसे कहते हैं
जो चूर्ण जठराग्नि तो बढ़ाते हैं, लेकिन आंतों की आंव को नहीं पचाते, उन्हें दीपन (भूख बढ़ाने वाले) चूर्ण कहते हैं.
त्रिकटु किसे कहते हैं
सौंठ, पीपल और काली मिर्च के बराबर भाग के मिश्रण को त्रिकटु कहते हैं. सर्दी में त्रिकटु का काढ़ा बहुत लाभप्रद होता है.
त्रिकंटक क्या है
कटोली, धमासा और गोखरू के मिश्रण को त्रिकंटक कहते हैं.