इन 3 आसनों के अभ्यास से आपका पेट और कमर रहेगी दुरुस्त और आप रहेंगे हमेशा जवान

आज की भागदौड़ भारी जिंदगी में शरीर में बीमारी होना आम बात है। लोगों को अपने शरीर के लिए समय ही नहीं मिल पाता है। ऊपर से अनियमित दिनचर्या और पोषण रहित खान पान स्वास्थ्य को और बिगाड़ देता है। इसलिए आजकल अधिकतर लोगों के शरीर में बीमारियों ने घर कर लिया है। सबसे पहले पेट की बीमारी शरीर में घुसती है। पेट से ही अन्य बीमारियाँ शरीर को घेर लेती हैं। मोटे तौर पर देखें तो 90 प्रतिशत लोग पेट और कमर की बीमारियों से पीड़ित हैं।

पेट की बीमारियों के कारण

अनियमित दिनचर्या और पोषण रहित खान-पान पेट की बीमारियों का सबसे बाद कारण है। इसके बाद शारीरिक श्रम की कमी और तनाव से पेट की बीमारियाँ हो जाती हैं

कमर की बीमारियों के कारण

कमर की बीमारियों का सबसे बड़ा कारण बैठने की गलत स्थिति है। जो लोग एक ही स्थिति में लगातार घंटों तक बैठे रहते हैं, उनकी कमर में दर्द होने की संभावना अधिक होती है। इसके अलावा जो स्त्रियाँ रसोई में लगातार बहुत देर तक खड़ी रहकर खाना बनती हैं, उनकी कमर में भी दर्द होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा पेट की बीमारियों के कारण भी कमर की बीमारियाँ हो जाती हैं।

कमर और पेट के लिए योगासन

योगासन कमर और पेट की बीमारियों से बचने का सबसे उत्तम साधन है। आइए जानते हैं, कौन से वे 3 आसान हैं, जिन्हें हम नियामित अभ्यास करें, तो पेट और कमर की बीमारियों से बचा जा सकता है। ये 3 आसन आपके पेट और कमर की बीमारी हटाकर आपको हमेशा जवान रखेंगे।

शलभासन (Shalabhasana)

जब शलभासन (Shalabhasana) किया जाता है, तो करने वाले का आकार शलभ (टिड्डा) सरीखा मालूम पड़ता है। इसलिए इसका नाम शलभासन है।

शलभासन की विधि

इन 3 आसनों के अभ्यास से आपका पेट और कमर रहेगी दुरुस्त और आप रहेंगे हमेशा जवान

इस आसन को करने के लिये मुँह के बल जमीन पर लेट जायें। दोनों हाथ और कलाई नितम्बों के पास जमीन पर रखे रहें। हथेली उल्टी रहे। हाथ को पेट के नीचे भी रक्खा जा सकता है। धीरे-धीरे साँस खींचें। इसके बाद सिर की तरफ से धड़ को और पैरों समेत टांगों को ऊपर की और ले जाएँ, जिससे टिड्डे की आकृति बन जाये। आसन पूरा होने तक साँस रोके रखें ( कुम्भक करें )। इस स्थिति में 5 से 10 सेकंड तक रहें। फिर धीरे-धीरे धड़ तथा टांगों को पहले की स्थिति में जमीन पर ले आयें। इसके बाद धीरे-धीरे सांस छोड़ दें। यह शलभासन की पूरी प्रक्रिया है। आप अपनी शक्ति  के अनुसार 6-7 या 15-20 बार यह क्रम चला सकते हैं। तीसरी विधि में आप अपने हाथ जमीन पर छाती के नजदीक रख सकते हैं।

शलभासन से लाभ

  • इस आसन से रीढ़ में पीछे की ओर लचक उत्पन्न होती है।
  • रीढ़ पीछे की ओर मुड़ती है। रीढ़ को झुकाने में यह पश्चिमोत्तानासन, हलासन और सर्वांगासन के उलटा फल पहुँचाता है, जो रीढ़ को आगे की ओर मोड़ते हैं।
  • मयूरासन की तरह यह पेट के भीतरी दबाव को बढ़ाता है।
  • यह भुजंगासन का पूरक व परिशिष्ट रूप आसन है। भुजंगासन शरीर के ऊपरी भाग को पुष्ट करता है। किन्तु शलभासन शरीर के निचले भाग और अंगों को पुष्ट करता है।
  • यह आसन पेट, जाँघ और पैरों की पेशियों को पुष्ट करता है।
  • इस आसन से पेट का अच्छा व्यायाम होता है। इससे मलावरोध दूर होता है। यह आँतों में एकत्रित मल को बड़ी आंत के आरंभिक स्थान से गुदा तक खींच लाता है। किसी भी शरीर विज्ञान की पुस्तक पढ़ने से यह बात सरलता से समझी जा सकती है।
  • यह पेट के अंगों जैसे यकृत, पित्त-प्रणाली और गुर्दे आदि को पुष्ट करता है।
  • यह पेट और आंतड़ियों के अनेक रोगों को दूर करता है।
  • यह यकृत की मन्द गति हटाता है।
  • इससे कुबड़ापन दूर होता है। मकर और त्रिकास्थि की नाड़ियों और रीढ़ के निचले भाग को पुष्ट करता है।
  • इस आसन से कमर का दर्द दूर होता है। कमर की पेशियों की सब तरह की गठिया दूर होती है।
  • जठराग्नि प्रदीप्त होती है। इससे मन्दाग्नि दूर होती है। भूख खूब लगती है।
  • भुजंगासन किडनी रोग को दूर करता है अतः पेशाब संबंधी समस्या से छुटकारा मिलता है।
  • यह आसन एड्रिनल ग्रंथि को ठीक करता है। इस आसन से शक्ति  वर्धन होता है।
  • रीढ़ की हड्डी लचीली बनती है, जिससे बुढ़ापा देर में आता है।
  • यदि कुबड़ापन पहले से नहीं है, तो इसके अभ्यासकर्ता को कुबड़ापन का रोग कभी नहीं हो सकता है।
  • इससे बढ़ी हुई तोंद घटने लगती है। मोटापा दूर होता है।
  • मासिक धर्म संबंधी समस्या ठीक होती है। स्त्री पुरुष के यौन रोग दूर होते हैं।
  • इससे सभी प्रकार के उदर विकार दूर होते हैं।
  • इससे जंघा, पेट, पीठ आदि के विकार नष्ट होते हैं। सर्वाइकल में भी लाभप्रद है।

शलभासन में सावधानी

  • गर्भवती स्त्रियां इस आसन को ना करें।
  • मासिक धर्म में यह आसन वर्जित है।

भुजंगासन (Bhujangasana)

भुजंग का अर्थ साँप है। जब सिर और छाती ऊँचे उठा कर यह आसन किया जाता है, तो आसन करने वाले का आकार फन उठाए हुए साँप के समान मालूम पड़ता है। इसलिए इसका नाम भुजंगासन (Bhujangasana) है।

भुजंगासन की विधि

इन 3 आसनों के अभ्यास से आपका पेट और कमर रहेगी दुरुस्त और आप रहेंगे हमेशा जवान

जमीन पर कंबल बिछाकर पीठ को ऊपर कर मुंह के और छाती के बल लेट जायें। सब पेशियों को ढीला कर दें। हथेलियों को ठीक कंधों और कोहनियों नीचे जमीन पर रखें। इसके बाद सांस की गति रोककर जिस प्रकार सांप अपना फन उठाता है, ठीक उसी प्रकार धीरे-धीरे सिर और शरीर के ऊपरी भाग को उठाना प्रारंभ करें। शरीर को सिर से पैर के अंगूठे तक जमीन छूता रहने दें। हथेलियों पर भी जोर पड़ेगा। रीढ़ को पीछे की ओर झुकाएं। अब पीठ और कमर की पेशियां खूब फैली हुई होंगी पेट का भीतरी दबाव भी बड़ा होगा जब तक इस अवस्था में रहें सांस को रोक कर रखें। इसके बाद जब नीचे आना हो, तो धीरे-धीरे सांस छोड़ दें। फिर सांस धीरे-धीरे निकाल कर अपनी छाती को नीचे ले जाएं और पहले वाली अवस्था में छाती के बल लेट जाएं। अपनी क्षमता के अनुसार इस आसन को 10 से लेकर 50 या 100 बार किया जा सकता है। हठयोगी इस आसन को एक हजार बार दोहराते है।

भुजंगासन के लाभ

  • सर्वांगासन और हलासन जहां रीढ़ की हड्डी को आगे की ओर मोड़ते हैं वहां भुजंगासन शरीर को पीछे की ओर मुड़ता है। इससे कुबडापन, पीठ का दर्द, कमर का दर्द और पीठ के पेशियों की गठिया दूर होती है।
  • पेट पर भीतरी दबाब पड़ने से जमा पड़ा हुआ मल बड़ी आँतों से मलद्वार तक खिच आता है। इसलिये यह कोष्ठबद्धता दूर करता है।
  • यह शरीर की अग्नि को बढ़ाता और अनेक रोगों को नष्ट करता है।
  • यह कुंडलिनी को जगाता है, जो मूलाधार चक्र में सुषुप्त अवस्था में रहती है।
  • स्त्रियों की जननेन्द्रिय और गर्भाशय पुष्ट करने में भुजंगासन विशेष लाभदायक होता है।
  • यह एक बहुत ही बलवर्द्धक आसन है। इससे मासिक धर्म का न होना, मासिक धर्म के होते समय कष्ट होना या प्रदर आदि अनेक गर्भाशय और जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोग दूर हो जाते हैं। उन अंगों में इससे रक्त का संचालन यथोचित रूप से होता रहता है। यह क्रिया इस सम्बंध की उत्तम से उत्तम औषधियों से भी अधिक गुणकारी है।
  • इससे सन्तानोत्पत्ति नियमित रूप से होती रहेगी और प्रसव पीड़ा नहीं रहेगी। गर्भकाल में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • इस आसन से गुर्दे ठीक ढंग से अपना काम करते हैं।

धनुरासन

इस आसन के करने पर शरीर का आकार धनुष के समान हो जाता है। फैली हुई बाहें धनुष की प्रत्यंचा का काम करती हैं। इससे रीढ़ पीछे की ओर मुड़ती है। यह भुजंगासन का सहायक वा पूरक आसन है। हम यह कह सकते हैं कि यह भुजंगासन और शलभासन का मिश्रण है। केवल पैरों के टखनों को ही इसमें पकड़ना होता है। धनुरासन में भुजंगासन, शलभासन और धनुरासन इन तीनों आसनों का मेल सदा बना रहता है। इन आसनों का संयोग हलासन और पश्चिमोत्तानासन का प्रत्युत्तर है, जो रीढ़ को आगे की ओर मोड़ते हैं।

धनुरासन की विधि

इन 3 आसनों के अभ्यास से आपका पेट और कमर रहेगी दुरुस्त और आप रहेंगे हमेशा जवान

मुँह नीचे की ओर कर छाती के बल लेट जायें। सब पेशियों को ढीला कर लें। बाँहों को बगल में फैला लें। पैरों को पीछे की ओर धीरे-धीरे मोड़ें। अपने दोनों हाथों से पैर के दोनों गट्टों को हाथ से पकड़ें। अब छाती को ऊपर उठाकर धनुष का आकार बना लें। बाँहों और हाथों को खूब सीधा और कड़ा रखें। दोनों घुटनों को एक दूसरे के नजदीक रखें। 2-3 मिनट बाद साँस को बाहर छोड़ते समय गट्टों को छोड़ दें और पहले वाली अवस्था में या जाएं। थोड़ा रुक-रुक कर इस आसन को 5-6 बार करें। जितनी देर तक आप आराम से कर सकते हैं, इस आसन को करें। आसन करते समय अपने इष्ट देव या ॐ  का जाप करते रहें।

धनुरासन से लाभ

  • इस आसन द्वारा पेट के अंगों की विशेष मालिश होती है। धनुष के आकार बने शरीर को आप दाएं-बाएं, आगे-पीछे भली भाँति हिलाएं, तो इससे पेट की पूरी तरह मालिश होगी।
  • धनुरासन मलावरोध, मन्दाग्नि और यकृत की दुर्बलता में लाभप्रद होता है।
  • इससे कुबड़ापन, पैरों और घुटनों की गठिया तथा पीठ की पेशियों का दर्द दूर होता है।
  • इससे चर्बी कम होती है। पाचनशक्ति  की वृद्धि होती है।
  • स्वाधीन पेशियों की गति बढ़ती है, भूख बढ़ती है, पेट के अंगों के रक्त की अधिकता रुकती है और उनकी पुष्टि भी होती है।
  • आँत के रोगियों के लिए धनुरासन बहुत ही लाभदायक है।
  • हलासन की तरह यह भी रीढ़ को लचीला बनाता है। य
  • ह हड्डियों के असामयिक कठोर बन जाने को रोकता है।
  • जो व्यक्ति  हलासन, मयूरासन और धनुरासन करता है, वह व्यक्ति  आलसी नहीं हो सकता है। उसमें पूर्ण उत्साह, शक्ति  और सामर्थ्य की वृद्धि होती है।
  • इस आसन से नितंब एवं पैर सुंदर तथा सुडौल बनते हैं। पेट की चर्बी घटती है तथा मोटापा समाप्त होता है।
  • डायबिटीज, बीपी संबंधी समस्या तथा हृदय रोग में लाभदायक है।
  • जिन स्त्रियों ने गर्भ से पहले इस आसन का अभ्यास किया है, उन्हें प्रसव काल में कष्ट नहीं होता है।
  • इससे स्त्री-पुरुष के यौन अंगों में रक्त संचार तीव्र गति से होने से उन्हें बहुत लाभ मिलता है।
  • इस आसन से छाती एवं सुडौल बनते हैं.
  • धनुरासन करने से स्त्रियों के मासिक धर्म संबंधी समस्या ठीक होती है.
  • यह सर्वाइकल में बहुत लाभदायक है।
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