वात-पित्त-कफ प्रकृति के अनुसार आहार | Diet for Vata Pitta Kapha Prakriti

यदि हम वात-पित्त-कफ प्रकृति के अनुसार आहार ग्रहण करें तो हमें कोई रोग नहीं होंगे और यदि हो भी जायें, तो जल्दी ठीक हो जायेंगे। मनुष्यों की तरह ही खाने-पीने की चीजें भी पांच तत्वों से बनी है। आयुर्वेद में इनके इसी आधार पर गुण तथा मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव का सूक्ष्म मूल्यांकन एवं सुनिश्चित सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। इन मूल सिद्धान्तों के आधार पर हम आयुर्वेद ग्रन्थों में वर्णित नहीं किये गये नये-नये खाद्य पदार्थों का मूल्यांकन भी कर सकते हैं।

वात-पित्त-कफ प्रकृति | vata pitta kapha

आम तौर पर यह देखने में आता है कि यदि दो व्यक्ति एक जैसा आहार ग्रहण करें तो उनमें से एक स्वस्थ रहता है जबकि दूसरा अस्वस्थ हो जाता है। इसी प्रकार एक ही प्रकार के भोजन से एक आदमी तो मोटा हो जाता है पर दूसरे पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसका कारण प्रकृति के साथ ही आहार का गुण भी है। जैसा कि हम ऊपर कह चुके हैं कि आहार भी शरीर की तरह पांच तत्वों से बना होता है। इन पांच तत्वों से आहार के रस बनते हैं। रस छह प्रकार के होते हैं मथुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त और कषाय शरीर स्थित विभिन्न धातुओं, मलों और जठराग्नि पर इन रसों की भिन्न-भिन्न क्रिया होती है। मनुष्य के भोजन में इन सभी रसों का उचित अनुपात में होना सामान्यतः लाभदायक माना जाता है। शरीर स्थित त्रिदोषों पर भी इनके प्रभाव अलग-अलग होते हैं। कोई खाद्य किसी दोष को बढ़ा सकता है या कम कर सकता है।

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आहार का उपापचय और अपचय

शरीर का सही तरह से पोषण, वृद्धि तथा टूटी फूटी कोशिकाओं की मरम्मत हमारे जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिये आवश्यक है। आहार से ही हमारे शरीर को काम काज के लिये ऊर्जा मिलती है। आहार का पाचन, अवशोषण, शरीर का पोषण और वृद्धि तथा आहार के जारण से ऊर्जा की प्राप्ति के पूरे चक्र को चयापचय ( मेटाबोजिलज़्म ) कहते। चयापचय के दो भाग होते हैं- उपापचय और अपचय। ये दोनों क्रियाएं एक साथ चला करती हैं।

उपापचय ( एनाबोलिज़्म ) में आहार शरीर की कोशिकाओं को बढ़ाने तथा उनकी टूट-फूट की मरम्मत का काम करता है। इस क्रिया से शरीर बढ़ता है अतः आयुर्वेद में इसे बृहण कहते हैं। अपचय ( कैटाबोलिज़्म में शरीर में स्थित आहार को श्वसन से प्राप्त आक्सीजन द्वारा जारण कर शरीर के कामकाज के लिये ऊर्जा पैदा की जाती है। इस क्रिया से शरीर का वजन कम होता है अतः इसे आयुर्वेद में लेखन कहते हैं।

हमें प्रकृति और ऋतु के अनुसार आहार अपनाना चाहिए

भोजन व औषधि यों के प्रकार को भी इन क्रियाओं के घटाने या बढ़ाने के आधार पर भी बृहण या लेखन के तौर पर वर्गीकृत किया जाता है। शरीर में भोजन का पाचन जठराग्नि पर निर्भर करता है। यदि अग्नि सामान्य से कम है तो भोजन का उचित पाचन नहीं होता और यदि यह अधिक हो जाय तो शरीर स्थित धातुओं को पचा कर शरीर को निर्बल कर देती है। भोजन अग्नि को बढ़ाने या कम करने वाले हो सकते हैं। हर आदमी को अपनी प्रकृति और पाचन शक्ति या जठराग्नि के अनुसार ही भोजन करना चाहिये। वर्ष के विभिन्न मौसमों में दोषों का प्रकोप या शमन स्वतः होता है। वसन्त कफ, वर्षा में बात तथा शरद में पित्त का प्रकोप होता है अतः भोजन ऋतु अनुसार भी होना चाहिये।

वात-पित्त-कफ प्रकृति के अनुसार आहार कैसा हो | वात पित्त कफ डाइट चार्ट| vata pitta kapha diet chart

तीनों प्रधान प्रकृतियों के लिये भोजन निर्देश नीचे दिये जा रहे हैं। मिश्र प्रकृतियों तथा रोगों की विभिन्न अवस्थाओं हेतु वैद्य की सलाह जरूर लेनी चाहिये। आप चाहें तो इन निर्देशों के अनुसार vata pitta kapha diet chart भी बना सकते हैं. इससे आपको रोज़मर्रा की खाने की वस्तुओं को चुनने में मदद मिलेगी. और वात पित्त कफ का घरेलू उपचार करने में मदद मिलेगी.

वात प्रकृति

अस्थिर मनोवृत्ति के कारण वात प्रकृति के लोग जब-तब खाते रहते हैं। इनकी अनियमित खाने की आदतों तथा तनाव अथवा अन्य तेज गतिविधियों के कारण भोजन का बहुत तेजी से अपचय हो जाता है और शरीर में जमा होने योग्य कुछ भी नहीं बचता। इसी कारण वात प्रकृति के लोगों का भार आसानी से नहीं बढ़ता वजन न बढ़ना अच्छी बात तो है पर यह स्थिति खतरनाक भी हो सकती है क्योंकि शरीर के पोषण की लापरवाही तथा अपचय की अति हो जाने पर शरीर की धातुएं नष्ट होने लगती हैं। वात प्रकृति के लोगों को निश्चित समय पर भोजन अवश्य करना चाहिये।

वात प्रकृति के लोगों का आहार कैसा हो

वात प्रकृति वालों को वातशामक पदार्थ जैसे गन्ना, शहद, गुड़, चीनी, मक्खन, घी, मलाई, दही, चिकने, भारी तेल वाले पदार्थ, संतरा, केला, अंगूर, आम आदि फल तथा गाजर, चुकंदर, प्याज, लहसुन लाभदायक हैं. इनको ठंडे शर्बतों और आहारों से बचना चाहिये। इनको उड़द के अतिरिक्त अन्य दालों का प्रयोग नहीं करना चाहिये तथा मसालों का प्रयोग भी कम करना चाहिये। यदि वात प्रकृति के लोग सूखे, ठंडे अथवा कटु तिक्त या कषाय रस वाले पदार्थों का सेवन अधिक करें तो इससे वात प्रकुपित होकर नुकसान होता है। इस प्रकृति के लोगों के लिए जौ, मक्का, सेब, अनार, सूखे मेवे मटर, गोभी, पत्तागोभी, आलू, कच्ची सब्जियां, हरी पत्तेदार सब्जियां, अंकुरित बीज और दही हानिकारक हैं वात प्रकृति के लोग आवश्यकता से कुछ अधिक भोजन कर सकते हैं इनको पौष्टिक और गर्म भोजन करना चाहिये तथा उपवास से बचना चाहिये। आजकल कोल्ड ड्रिंक्स पीने की आदत लोगों को पड़ जाती है। वात प्रकृति के लोगों को इससे बचना चाहिये।

पित्त प्रकृति

इस प्रकृति के लोगों का हाजमा अच्छा होता है इस कारण कभी-कभी ये अधिक खा जाते हैं जो इन्हें नुकसान करता है। पित्त प्रकृति के लोगों को शांत चित्त होकर आराम से भोजन करना चाहिये तथा क्रोथ या अन्य भावनात्मक उद्वेग की स्थिति में भोजन करने से बचना चाहिये। इनको पित्त शामक आहार, जैसे ठंडे शर्बत तथा शाकाहारी भोजन और सलाद लाभदायक है।

पित्त प्रकृति के लोगों का आहार कैसा हो

पित्त प्रकृति वाले लोगों के लिए मक्खन, घी, मलाई, मिठाई, ककड़ी, खीरा, गोभी, शकरकंद, हरी पत्तेदार सब्जियां, पत्तागोभी, अंकुरित बीज, मीठे संतरे, खरबूजा, नारियल, आम, केला, अनन्नास, अंगूर आदि लाभदायक हैं। पित्त प्रकृति के लोगों के लिए दही, शहद, सरसों का तेल, खट्टे फल, टमाटर, गाजर, प्याज, लहसुन, मूली, अदरक, अधिक नमक, गर्म और मसालेदार पदार्थ नुकसानदेह है।

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कफ प्रकृति

कफ प्रकृति के लोगों में वजन बढ़ने की प्रवृत्ति होती है। तथा इनकी पाचन शक्ति धीमी होती है। कफ प्रकृति के लोगों को इसी कारण खूब भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिये। सप्ताह में एक दिन उपवास करना इनके लिए बहुत लाभदायक है। उपवास के दिन ठोस आहार के स्थान पर फलों का रस या बिना मलाई वाले दूध का प्रयोग किया जा सकता है।

कफ प्रकृति के लोगों का आहार कैसा हो

कफ प्रकृति वालों को कफशामक आहार का प्रयोग करना चाहिये। इनको गर्म और हल्का भोजन तथा पेय पदार्थों का प्रयोग करना चाहिये। इनको मलाई निकला दूध, जौ, मक्का, सेब अनार, आलू, गोभी, हरी पत्तेदार सब्जियां, अंकुरित बीज, मूली, मसालों आदि का प्रयोग उचित मात्रा में करना चाहिये। इनको मलाई वाला दूध, मक्खन, मलाई, मिठाई, अंगूर, खरबूजा, तरबूज, खजूर, नारियल, केला, सन्तरा, टमाटर, खीरा, चिकने-भारी तले आहार आदि से बचना चाहिये।

vata pitta kapha diet chart
Vata Pitta Kapha Diet Chart

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